जैव विकास क्या होता है | तथा जैव विकास के कितने सिद्धांत है |

वेलकम दोस्तों आज के इस ब्लॉग पोस्ट पर हम जैव विकास और जैव विकास के कितने सिद्धांत है के बारे में पूर्ण अध्ययन करेंगे जैव विकास क्या होता है तथा जैव विकास के कितने सिद्धांत है, की पूरी इतिहास के बारे में भी हम पूरी जानकारी देंगे |

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 इस ब्लॉग पोस्ट पर पढ़े जाने वाले महत्वपूर्ण टिप्पणी :-

. जैव विकास क्या होता है

. समजात अंग

. समरूप अंग

अवशेषी अंग

. जीवाश्म

. जैव विकास के कितने सिद्धांत होते हैं



जैव विकास क्या होता है

 प्रारंभिक निम्न कोटि के जीवों से क्रमिक परिवर्तनों द्वारा अधिकाधिक जीवो की उत्पत्ति को जैव विकास कहते हैं जीव जंतुओं की रचना कार्य एवं रासायनिकी ,भ्रूणीय विकास, वितरण आदि में विशेष क्रम व आपसी संबंध के आधार पर सिद्ध किया गया है कि जैव विकास हुआ है

 समजात अंग 

ऐसे अंग जो विभिन्न कार्यों के लिए उपयोजित हो जाने के कारण काफी असमान दिखाई दे सकते हैं परंतु मूल संरचना एवं भ्रूणीय  परिवर्तन में समान होते हैं समजात  अंग कहलाते है  हैं 
     
            जैसे:- सील  के फ्लिकर, चमगादड़ के पंख ,घोड़े की अगली टांग ,बिल्ली का पंजा तथा मनुष्य के हाथ की मौलिक संरचना एक जैसी होती है
            इन सभी में  रेडियो अलना ,कार्पल  , मेटाकार्पल आदि अस्थियां होती है इनका भ्रूणीय विकास भी एक ही  सा  होता है परंतु इन सभी का कार्य अलग-अलग होता है 
सील  फ्लिकर –                तैरने  के लिए
 चमगादड़ के पंख-           उड़ने  के लिए 
घोड़े की टांग –                   दौड़ने के लिए 
मनुष्य का हाथ –                  वस्तु को पकड़ने के लिए 

समरूप अंग 

                       ऐसे अंग जो समान कार्य के लिए उपयोजित हो जाने के कारण समान दिखाई देते हैं परंतु मूल रचना एवं भ्रूणीय परिवर्धन में भिन्न होते हैं समरूप अंग कहलाते हैं

उदाहरण -:तितली, पंछियों तथा चमगादड़ के पंख उड़ने का कार्य करते हैं और देखने में एक समान लगते हैं परंतु इन सभी की उत्पत्ति अलग-अलग ढंग से होती है

तितलियों के पंखों की रचना – शरीर के भित्ति भंज द्वारा
पक्षियों के पंख की रचना – इनकी अग्रपादो पर परो द्वारा
चमगादड़ के पंखों की रचना – हाथ के चार लंबी अंगुलियों तथा छड़ के बीच फैली त्वचा से हुई है |



अवशेषी अंग

 ऐसे अंग जो जीवो के पूर्वजों में पूर्ण विकसित होते हैं परंतु वातावरणीय परिस्थितियों में बदलाव से इनका महत्व समाप्त हो जाने के कारण विकास क्रम में इनका क्रमिक लोप होने लगता है, अवशेषी अंग हैं |

जैसे -:कण के पल्लव ,त्वचा के बाल आदि |



जीवाश्म

अनेक ऐसे प्राचीन कालीन जीव एवं पादपों के अवशेष जो हमारी पृथ्वी पर विद्यमान थे परंतु बाद में समाप्त यानी विलुप्त हो गए जो भू -पटल की चट्टानों में परिलक्षित मिलते हैं उन्हें जीवाश्म कहते हैं तथा इनके अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान कहा जाता है |



जैव विकास के कितने सिद्धांत होते हैं

 जैव विकास के संबंध में अनेक सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं जिसमें लैमार्कवाद ,डार्विनवाद एवं उत्परिवर्तनवाद प्रमुख है जो इस प्रकार हैं |

1 लैमार्कवाद
2 डार्विनवाद
3 उत्परिवर्तनवाद


1 लैमार्कवाद

 लैमार्क का सिद्धांत 1809 ई० में उनके पुस्तक फिलॉसफी जुलॉजिक में प्रकाशित हुआ इस सिद्धांत के अनुसार, जीवों एवं उनके अंगों में सतत बड़े होते रहने की प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है इन जीवो पर वातावरणीय परिवर्तन का सीधा प्रभाव पड़ता है इसके कारण जीवो में विभिन्न अंगों का उपयोग घटता बढ़ता रहता है
अधिक उपयोग में जाने वाले अंगों का विकास अधिक एवं कम उपयोग में आने वाले अंगों का विकास कम होने लगता है इसे अंगों से कम या अधिक उपभोग का सिद्धांत भी कहते हैं इस प्रकार से जीवो द्वारा उत्पादित लक्षणों की वंशागति होती है जिसके फलस्वरूप नए-नए प्रजातियां बन जाती है

उदाहरण – जिराफ की गर्दन का लंबा होना


2 डार्विनवाद

 जैव विकास के संबंध में द्यः नियम सर्वाधिक प्रसिद्ध है इस नियम के अनुसार ,सभी जीवो में प्रचार स्थानों पति की क्षमता होती है अतः अधिक आबादी के कारण प्रत्येक जीव को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु दूसरे जीवो से जीवन पर्यंत संघर्ष करना पड़ता है यह संघर्ष सजातीय अंतरजातीय तथा पर्यावरण होते हैं दोस्त और जातीय जो आपस में बिल्कुल समान नहीं होते यह विविधताओं इनके जनक से वंशानुक्रम में मिलते हैं |




3 उत्परिवर्तनवाद

 यह सिद्धांत वस्तुत ह्यूगो डी वृज द्वारा प्रतिपादित किया गया है इस सिद्धांत के पांच प्रमुख तत्व इस प्रकार है


1  नई जीव जातियों की उत्पत्ति लक्षणों में छोटी-छोटी एवं स्थिर विविधताओं के प्राकृतिक चयन द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी संचय एवं क्रमिक विकास के फलस्वरुप नहीं होती है बल्कि अपरिवर्तनीय के फलस्वरूप होती है

2  इस प्रकार से उत्पन्न जाति का प्रथम सदस्य उत्परिवर्तन कहलाता है यह उत्परिवर्तन लक्षण के लिए शुद्ध नस्ल का होता है

3  उत्परिवर्तन अनिश्चित होते हैं यह किसी एक अंग विशेष में अथवा अनेक अंगों में एक साथ उत्पन्न हो सकते हैं

4  सभी जीव जातियों में उत्परिवर्तन के प्राकृतिक प्रवृत्ति होती है

5  जाति के विभिन्न सदस्यों में उत्परिवर्तन भिन्न भिन्न हो सकते हैं
जैव  विकास क्या होता है



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                                                                       धन्यवाद