मनुष्य में उत्सर्जन एक बहुत ही महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से हम अपनी शरीर से हानिकारक पदार्थो को बाहर निकलते है तो हम इस जैविक प्रक्रिया को पूरी तरह से जानते है की मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र की संरचना तथा कार्यविधि किस प्रकार से संपन्न होती है
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!उत्सर्जन -:वह जैविक प्रक्रम जिसके द्वारा हम अपनी शरीर से हानिकारक पदार्थो को बाहर निकलते है तो इस प्रक्रिया को उत्सर्जन कहते है
मनुष्य में उत्सर्जन तंत्र की संरचना तथा कार्यविधि -:
मनुष्य में उत्सर्जन की प्रक्रिया में भाग लेने वाले अंग आपस में मिलकर उत्सर्जन तंत्र का निर्माण करते है और वो अंग इस प्रकार से है
(1 )वृक्क
(2 )मूत्र वाहिनियाँ
(3 )मूत्राशय
(4 )मूत्रमार्ग
(1 )वृक्क-:
मनुष्य में वृक्क लाल रंग तथा सेम के बीज की संरचना जैसी होती है जिसका बाहरी भाग उत्तल तथा अंदर का भाग अवतल होता है
मानव में वृक्क एक जोड़ी पाया जाता है जो उदरगुहा के पृष्ठ भाग में कशेरुदण्ड के दोनों ओर स्थित होता है दोनों वृक्क एक झिल्ली से जुड़े होते है जिसे पेरिटोनियम कहते है तथा हमारे वृक्क का निर्माण भ्रूणीय मिसोद्रम में होता है मानव का वृक्क धमनी ,लसिका वाहिनी तथा मूत्रवाहिनी वृक्क से इसी भाग द्वारा जुड़ी होती है
वृक्क की आंतरिक संरचना -:
वृक्क की संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई को विक्राणु या नेफ्रोन कहते है तथा मानवीय वृक्क में लाखो लम्बी ,महीन नलिकाएं पाई जाती है जो रक्त को छानकर नाइट्रोजनी पदार्थ को अलग करती है जिसे हम मूत्र कहते है
नेफ्रोन के निम्नलिखित भाग होते है जो इस प्रकार से है
a)मालपीघिजन b)समीस्थ कुंडलित नलिका c) हेनले का लूप
a)मालपीघिजन-:यह वृक्क नलिका का अग्र भाग होता है जो कशेरुक गुर्दे का उत्सर्जन इकाई होता है तथा इसके दो भाग होते है जिसमे पहला बोमनसंपुट और ग्लोमेरुलुस होता है जिसमे बोमन संपुट नेफ्रोन का भाग होता है जो नेफ्रोन की संरचना में सबसे ऊपरी भाग में पाया जाता है बोमन संपुट का आकार प्यालेनुमा संरचना की होती है जो प्लोमेरुलास में धँसा रहता है इसके भित्ति में एक अलग प्रकार की कोशिकाएं पाई जाती है जिसे पदानु कहते है इस झिल्ली में बहुत अधिक छोटे -छोटे छिद्र पाए जाते है जिसके कारण यह अधिक पारग्यम होती है
तथा दूसरा भाग ग्लोमेरुलुस होता है जो कोशिकाओं का एक समूह होता है जिसके लगभग धमनिया 50 शाखाओ में विभक्त हो जाती है और एक गुच्छ का निर्माण करती है इसके द्वारा रक्त में से अपशिष्ट पदार्थो का फ़िल्टर किया जाता है जिससे शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व और प्रोटीन की क्षति न हो b)समीस्थ कुंडलित नलिका-:यह नलिका एक घनाकार सतह से ढकी होती है तथा इसके ग्रीवा के पीछे लम्बी मोटी कुंडलित नलिका निकली होती है
c) हेनले का लूप-:इस वृक्क की नलिका का आकार U आकार के जैसा होता है
(2 )मूत्र वाहिनियाँ –
वृक्क में सिथत प्राम्भिक भाग चौड़ा व् कीपनुमा की संरचना जैसी होती है जिसे हम वृक्क श्रेणी कहते है तथा हरेक वृक्क की नाभि से मोटी ,पेशीय भित्ति की बनी लम्बी संकरी नलिका निकलती है जिसे हम मूत्रवाहिनी कहते है
(3 )मूत्राशय-:
उत्सर्जन तंत्र का यह भाग थैलीनुमा संरचना की पेशिये भाग होती है जिसमे स्थाई रूप से मूत्र को संग्रहित किया जाता है तथा इसकी स्तर की तीन भागो में बैठा गया है
a)बाह्य स्तर b)मध्य स्तर c)आंतरिक स्तर
a)बाह्य स्तर -:यह स्तर पेरिटोनियम से बना सिरोसा स्तर होता है
b)मध्य स्तर-:यह मूत्राशय का मध्य यानी बीच का भाग होता है जिसका स्तर अरेखित पेशिये से बना होता है c)आंतरिक स्तर -:यह आंतरिक स्तर होता है जी श्लेष्मा स्तर की बनी होती है
(4 )मूत्रमार्ग-
मूत्राशय की ग्रीवा से एक पुतली नलिका निकलती है जिसे मूत्रमार्ग कहते है इसी मूत्रमार्ग की सहायता से शरीर मूत्र को बाहर निकाला जाता है
इस मूत्रमार्ग पर एक अवरोधी पेशी पाई जाती है जो मूत्रमार्ग को कसकर रखती है तथा मूत्रत्याग के समय ये अवरोधी पेशी हलकी ढीली हो जाती है जिससे मूत्र आसानी बाहर निकल जाता है