मनुष्य में पाचन कैसे होता है || मनुष्य में पाचन क्रिया || मनुष्य में पाचन की प्रक्रिया ||

 आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे की मनुष्य में पाचन कैसे होता है  और साथ में मानव शरीर में होने वाली सम्पूर्ण पाचन की प्रक्रिया को समझेंगे यानि हम मनुष्य में पाचन की प्रक्रिया को भी जानेंगे  | 

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पाचन 

              शरीर के अंदर भोज्य पदार्थों को सरल अणुओ में तथा विलेय अणुओ में तोड़ना ही पाचन कहलाता है |


मनुष्य में पाचन

 मनुष्य जब भोज्य पदार्थों को ग्रहण कर लेता है तो उस समय भोज्य पदार्थों में उपस्थित पोषक तत्वों का पाचन आहार नाल में होता है और एक आहार नाल में विभिन्न अंग शामिल होते हैं जो आपस में सम्मिलित रूप से पाचन तंत्र बनाते हैं आहार नाल में भाग लेने वाले अंग इस प्रकार है


1. मुख
2. ग्रासनली
3.आमाशय
4. क्षुदांत्र
5. वृहदांत्र


1. मुख

मुख आहार नाल का मुख्य द्वार होता है मुख के द्वारा ही मानव भोजन को ग्रहण कर पाते हैं और मनुष्य में भोजन का पाचन मुख से ही शुरू होता है मानव मुख के भी अलग-अलग भाग होते हैं जो इस प्रकार हहैं


           दांत

        लालाग्रंथि

        जीभ

           

 दांत

दांत का मुख्य कार्य भोजन को चबाना और फाड़ना होता है दत्त भोजन को चबाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित करता है दांत के मुख्यतः चार प्रकार होते हैं
कृतग,रदनक,अग्रचवर्णक ,चवर्णक

कृतग यह दात मुख के सामने की ओर या जबड़ों के बीच में पाया जाता है जिसकी कुल संख्या 8 होती है चार ऊपर और चार नीचे यह भोजन को काटने में सहायता प्रदान करती है


रदनक  यह दांत कृतन के बगल में या पास में एक -एक होती है इसकी कुल संख्या चार होती है इसका कार्य भोजन को चीरने और फाड़ने का होता है

अग्रचवर्णक  यह दांत रदनक के पास में होते हैं इसकी कुल संख्या आठ होती है इसका आकार गोलाकार और ऊपर से चपटा होता है जिसका काम भोजन के कण को कुचलना होता है

चवर्णक –  यह दांत अग्रचवर्नक के बाद में होता है तथा मनुष्य के जबड़े में 6 अग्रचवर्नक होते हैं इस प्रकार इस की कुल संख्या 12 होती है अग्रचवर्नक का मुख्य कार्य भोजन का पीसना होता है यानी जो भोजन और अग्रचवर्नक के द्वारा कुचला जाता है उसे पीसने का काम अग्रचवर्नक करता है |


  लालाग्रंथि 

 लाला ग्रंथि हमारे मुख में पाई जाने वाली ऐसी अंग है जो लाल बनाती है जो 24 घंटे में लगभग 1 लीटर से डेढ़ लीटर लार स्रावित करती है जो हमारे मुख को नम और स्वच्छ रखती है और चबाने निगलने तथा पाचन की क्रिया में मदद करती है
लार में एमाइलेज नामक एंजाइम पाया जाता है जो भोजन में उपस्थित स्टार्च को ग्लूकोस और माल्टोज जैसे अणु में बदलता है

   जीभ

 जीभ की औसतन लंबाई 10 सेंटीमीटर तक होती है जो भोजन को चबाने और निकलने के लिए आसान बनाती है यह स्वाद अनुभव का प्रमुख अंग है जीभ की ऊपरी सतह पेपीला और स्वाद कणिकाओं से ढकी होती है जीभ स्वर को भी नियंत्रित करता है
जीभ की ऊपरी सतह पर दानेदार उभार पाए जाते हैं जिन्हें स्वाद कणिकाएं कहते हैं यह स्वाद कालिकाएं चार प्रकार की होती है जो हमें चार प्रकार के स्वाद मीठा , कड़वा, खट्टा और नमकीन को बताता है

कोई भी वस्तु मेथी नमकीन है इसका पता हमें जीभ के आगे वाला भाग बताता है
जीभ के पीछे का भाग कड़वे स्वाद को बताता है
जीभ के किनारे वाला भाग खट्टी चीज का अनुभव कराता है

2. ग्रासनली

एक प्रकार की नली होती है जो मांसपेंसियों से बनी होती है यह ग्रासनली मुख को अमाशय से जोड़ने का कार्य करता है आहारनाल के एक भाग में भोजन को नियमित रूप से गति प्रदान करता है इसमें निरंतर रूप से भोजन के कण फैलकर तथा सिकुड़कर आगे की ओर गति करते हैं और अमाशय में पहुंच जाते हैं ग्रास नली में किसी भी प्रकार का कोई पाचन क्रिया नहीं होता है

3.आमाशय

 आमाशय आहारनाल का सबसे चौड़ा भाग है जिसकी आकृति J के समान थैलीनुमा होती है अमाशय में 1 से 3 लीटर तक भोजन रह सकता है
अमाशय को तीन भागों में बांटा गया है
a)कार्डियक भाग
b)जठर निर्गमी भाग
c)फंडिस भाग


a)कार्डियक भाग –  अमाशय के आगे वाले भाग को कार्डियक भाग कहते हैं इस भाग के कारण ही भोजन ग्रासनली से अमाशय में आ पाते हैं
b)जठर निर्गमी भाग- यह आमाशय का दाहिना वाला भाग होता है जो कि छोटी आंत में खुलता है और भोजन को अमाशय से छोटी आत में जाने देता है

c)फंडिस भाग – आमाशय के बीच वाले भाग को फंडिस कहते हैं जो कि अमाशय के 80% भाग का निर्माण कराता है इसी भाग में पाचन की क्रिया होती है
आमाशय में भोजन के कण क्रमाकुंचन द्वारा पाचन करता है जिसके फलस्वरूप भोजन एक लेई के रूप में बदल जाता है जिसे काईन कहते हैं अमाशय में HCL का स्राव होता है जो भोजन के साथ आए हुए हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है साथ में पेपसिन का भी स्राव होता है जो प्रोटीन के जटिल पदार्थों को सरल पदार्थों में बदलता है

आमाशय के आंतरिक स्तर पर श्लेष्मा पाई जाती है जो इसके आंतरिक सतह को अम्ल से सुरक्षा प्रदान करती है


4. क्षुदांत्र

 यह भाग आहार नाल की सबसे लंबा हिस्सा होता है जिसमें प्रोटीन ,वसा और कार्बोहाइड्रेट का पूर्ण पाचन और अवशोषण होता है छोटी आत के आंतरिक दीवार पर उंगलीनुमा संरचना पाई जाती है जिसे दीर्घरोम कहते हैं जो अवशोषण की क्षमता को बढ़ाता है
यकृत शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि होती है जो पित्ताशय से पित्त रस स्रावित करता हैं जिसके द्वारा वसा का पाचन होता है अग्नाशय से अगनाशिक रस स्रावित होता है जिसमे

प्रोटीन का पाचन – ट्रिप्सिन एंजाइम से
वसा का पाचन – लाइपेज एंजाइम से
कार्बोहाइड्रेड का पाचन -एमिलेज एंजाइम से

होता है जिसके बाद ये सभी यानी

वसा -वसा अम्ल में
कार्बोहाइड्रेड -ग्लूकोज में
प्रोटीन -पेप्टोज में

5. वृहदांत्र –

 बड़ी आत के आंतरिक स्तर पर श्लेष्मा पाई जाती है जिससे कोई भी पाचक रस स्रावित नहीं होते हैं इससे मल निर्माण में सहायता होता है और पचित पोषक तत्व बड़ी आत में आते हैं और कार्बोहाइड्रेट से हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस बनाती है जोकि बदबूदार होती है यह हवा के रूप में गुदा से बाहर निकलती रहती है तथा व संगठन से यह जीवाणु हाइड्रोजन सल्फाइड कार्बन डाइऑक्साइड तथा एमिन्स बदलते है इन्ही सब पदार्थो से हमे खट्टी डकार और गैस की समस्या होती है |
मनुष्य में पाचन कैसे होता है

तो अब आपने मनुष्य में पाचन कैसे होता है को पूरी तरह से जान लिया है अगर आपको यह informative post लगा हो तो जरूर शेयर और comment करे


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