आज के इस पोस्ट पर मानवीय शरीर में होने वाले एक बहुत ही महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रम के बारे में जानेंगे जिसके वजह से हमारे शरीर में पदार्थो तथा वायुओं का परिवहन होता है यानी हम मानव में परिवहन के बारे में समझने वाले है
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!आज के इस ब्लॉग पोस्ट पर पढ़े जाने वाले टॉपिक इस प्रकार है
*परिवहन
*मानव में परिवहन
*ह्रदय
*रुधिर वाहिकाएं
*लसिका
*परिवहन -:वह जैविक प्रक्रम जिसके माध्यम से शरीर के अंदर से पदार्थों को एक स्थान दूसरे स्थान तक पहुँचाया लाया जाता है तो इस प्रक्रिया को परिवहन कहते है
परिवहन के कारण हमारे शरीर का तापमान ,pH मान स्थिर रहता है साथ में हमारे शरीर को रोगों से लड़ने में भी सहायता करता है तथा इस जैविक प्रक्रम में केवल भोज्य पदार्थो का ही नहीं बल्कि एमिनो अम्ल ,गैस ,हॉर्मोंस ,रक्त कोशिकाएं जैसे पदार्थों का भी एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा तथा लाया जाता है यानी परिवहन किया जाता है
मनुष्य में परिवहन तीन तरीको से सम्पन्न होता है जो इस प्रकार है -:
1. )हृदय के द्वारा 2. )रुधिर वाहिकाएं के द्वारा 3. )लसिका के द्वारा
1. )हृदय के द्वारा -:
हृदय एक प्रकार का पेशिय अंग है जिसका आकार लगभग हमारी मुठ्ठी की भाँति होती है यह हृदय लाल रंग का मांसल तथा खोखला अंग होता है जो पेशिय ऊतक का बना होता है हमारे हृदय में एक द्रव भरा होता है जिसे पेरिकार्डियल कहते है यह द्रव हमारे हृदय को बाह्य आघातों से सुरक्षा कराता है
मानव हृदय मुख्यतः चार भागों में विभाजित होता है जिनके दो लंबवत रूप से बंटे होते है।
दाँया अलिंद , बायाँ अलिन्द ,दायाँ निलय , बाँया निलय
मानव का हृदय एक पंप की भांति कार्य करता है जो शरीर के सभी भागो से रुधिर को हृदय तक पहुंचाता है तो वंही हृदय से भी शरीर के सभी भागो तक पुनः भेजता है जिसमे इसके इस परिवहन में धमनी तथा शिरा अपना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा अलिंद के शिथिल होने से रुधिर महाशिराओ के माध्यम से अलिंद में तथा निलय के शिथिल होने पर रुधिर अलिंदो से निलय में जमा हो जाता है तथा जब हृदय के इन सभी भागो में प्रकुंचन होता है तो रुधिर अलिंद से निलय तथा निलय से महाधमनी में धकेल दिया जाता है इस प्रकार हृदय से शुद्ध रुधिर शरीर के सभी भागो तक पहुँच जाता है तथा जब हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के द्वारा उत्पन्न अशुद रुधिर को शिरा के द्वारा हृदय में पंहुचा दिया जाता है और इस प्रकार शुद्धिकरण होकर पुनः शरीर के में भेज दिया जाता है और हम इस पूरी प्रक्रिया को हम दोहरा परिसंचरण कहते है तथा इस प्रक्रम में भाग लेने वाले अंग मिलकर दोहरा परिसंचरण तंत्र कहलाते है।
2. )रुधिर वाहिकाएं के द्वारा-
अब हमने जान लिया है की हृदय परिसंचरण तंत्र का मुख्य भाग होता है परन्तु शरीर के सभी भागो तक रक्त का संचरण से ही संपन्न होता है।
रुधिर वाहिकाओं निम्नलिखित प्रकार की होती है जो इस प्रकार से है
a. )धमनी तथा महाधमनी b. ) शिरा तथा महाशिरा
a. )धमनी तथा महाधमनी -: धमनी हृदय के बाह्य निलय से प्रारम्भ होती है और साथ में इसकी दिवारी भी मोटी होती है धमनी के द्वारा शुद्ध रक्त यानी ऑक्सीजनयुक्त रक्त को शरीर के सभी कोशिकाओं तक पहुंचाया जाता है और धमनियों के संकुचन तथा शिथिलन के गुण से रक्त आगे बढ़कर प्रवाहित होती है।
b. ) शिरा तथा महाशिरा -: शिरा के द्वारा शरीर के सभी कोशिकाओं से कार्बनडाऑक्साइड को हृदय तक पहुंचाया जाता है तथा शिराओ का प्रारम्भ केशिकाओं है और केशिकाओं के मिलने से ही प्रथम सूक्ष्मशिराओ का निर्माण होता है तब ये सूक्ष्मशिरा मिलकर बड़े प्रकार की शिरा का निर्माण करती है और इस प्रकार अंतत महाशिरा का निर्माण हो जाता है।
3. )लसिका के द्वारा-:
लसिका भी प्रकार का रुधिर होता है लेकिन जब रुधिर कोशिकाओं से होकर बहता है तो इसका द्रव रासायनिक अभिक्रियाओं के कारण कोशिकाओं की पतली दीवारों छानकर बाहर निकल जाता है जिसे हम लसिका कहते है तथा लसिका में भाग लेने वाले अंग मिलकर लसिका तंत्र का निर्माण करती है तथा लसिका अंतराल ,वाहिनियों और लसिका वाहिनियों बीच -बीच में लसिका ग्रंथि भी पाए जाती है।
जब लसिकावाहिनिया अपने पथ से किसी न किसी भाग में लसीकाग्रंथियो से होकर गुजरती है तो इन्ही ग्रंथि लसीकाग्रंथि का निर्माण होता है इनका आकार साधारणतः अंडाकार जैसी आकृति का होता है