इस बार हम अपने इस पोस्ट पर वेद के बारे में जानने वाले है जिससे हम अपने हमारे भारतीय इतिहास के बारे में और गहराई से समझ पाते है जो हमारे लिए जानना भी बहुत आवश्यक हो जाता है तो आज हम अपने वेद के बारे में जानने से पहले हम भारतीय इतिहास के बारे में समझेंगे जिससे हमें वेद को समझने में और आसानी होंगी।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इस पोस्ट पर पढ़े जाने वाले टॉपिक -:
*भारतीय इतिहास
*प्राचीन भारत
*वेद
*वेद के प्रकार
*ऋग्वेद
*यजुर्वेद
*सामवेद
*अथर्वेद
भारतीयइतिहास
भारत का इतिहास लाखों -करोड़ों वर्ष पुराना है जो हमारे लिए प्रेरणात्मक तथा गौरवान्वित से भरा रहा है जिसमे उत्तर में स्थित विशालकाय हिमालय पर्वत से लेकर दक्षिण दिशा की ओर लाखो कोषों में फैला हुआ समुद्र तथा उपमहाद्वीप भारतवर्ष यानी भरत का देश में तथा इस देश निवास करने वाले निवासियों को भरत के संतान यानी भारती कहा जाता हैं।
जब यूनानी हमारे देश में आये तो उन्होंने भारत को इंडिया प्रचलित किया था तो वही मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारो ने हिन्दुस्थान अथवा हिन्दू से संबोधित किए थे।
प्राचीन भारत
जब हम प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में अध्ययन करते है तो हमें हमारे पूर्वजों तथा उनके कलाकृतियों के बारें में अद्भुत जानकारियाँ प्राप्त होती है जो हमें प्रेरणा का स्रोत देती है और हमें प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में जानकारियाँ मुख्यतः चार स्रोतों से प्राप्त होती है जिसमे धर्मग्रन्थ
जब हम अपने भारत के इतिहास में प्राचीन भारत के बारे में अध्ययन करते है तो भारत का सर्वप्राचीन धर्मग्रन्थ वेद है और इस महान धर्मग्रन्थ के रचियता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास को माना जाता है इन्ही महान महर्षि वेदव्यास हमे प्राचीन भारत का अवलोकन धर्मग्रन्थ में किया गया है जिसका वर्णन वेद में पूर्ण अर्थ के साथ दर्शाया गया है।
वेद चार प्रकार के होते है।
1) ऋग्वेद
2) यजुर्वेद
3) सामवेद
4) अथर्ववेद
1) ऋग्वेद -:ऋचाओं के क्रमबद्ध ज्ञान को ऋग्वेद कहा जाता है इस वेद में 10 मंडल , 10462 ऋचाये तथा 1028 सुत्क है और इस वेद के ऋचाओं के पढ़ने वाले पंडितो को होतृ कहते है हम इस ऋग्वेद की सहायता से हमे आर्य समाज के राजनितिक प्रणाली तथा इतिहास के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है और इसी वेद में भगवान अग्नि के लिए 200 ऋचाएं तथा इंद्र भगवान के लिए 250 ऋचाये की रचना की गयी है।
इसके 8वें मंडल में हस्तलिखित ऋचाओं को खिल कहा जाता है और 9वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख किया गया है और इस ऋग्वेद के बाद प्राचीन इतिहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ ब्राम्हण का स्थान है।
2) यजुर्वेद-: यजुर्वेद मंत्रों तथा बलि के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है तथा यजुर्वेद के पाठको या पंडितों को अध्वर्य कहते है।
इस वेद में यज्ञ के लिए गद्य तथा पद्य मन्त्रों का अर्थानुसार विवरण किया गया है यह वेद सभी वेदों में से क महत्वपूर्ण वेद है यह हिन्दू धर्म के सभी चारो वेदो में से एक सबसे पवित्रम वेद है तथा इस यजुर्वेद में दो प्रकार के शाखा को दर्शाया गया है जिसमे एक कृष्ण यजुर्वेद है जी दक्षिण भारत में प्रसिद्ध है तो वंही दूसरा शुक्ल यजुर्वेद है जो उत्तर भारत में प्रसिद्ध है। यजुर्वेद का नाम यजुस के नाम पर ही यजुस +वेद =यजुर्वेद पर रखा गया था इस वेद के द्वारा हमे अधिकतर यज्ञों तथा हवनों के नियम और विधिओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती ै।
3)सामवेद -: इस वेद में गयी जा सकने वाली ऋचाओं का संकलन किया गया है साथ में इसके पाठकों को उद्रातृ कहते है और इस महान वेद को भारतीय संगीत का जनक भी कहा जाता है।
सामवेद गयी जाने वाली वेद है तथा यह सभी वेदों में आकार के दृष्टिकोण से सबसे छोटा है फिर भी इसकी प्रतिष्ठा का मुख्य कारण गीता है जिसमे कृष्ण के द्वारा वेदना है सामवेद छोटा तो है परन्तु यह सभी वेदों का सार रूप है क्योकि इसमें सभी वेदों के चुने हुए अंश शामिल किये गए है सामवेद की महत्व अधिक है क्योकि अग्नि पुराण के अनुसार सामवेद के सभी मंत्रो को विधिवत रूप से केवल जाप करने से मात्र से ही हमारे शरीर के अनेकों रोगों से छुटकारा प्राप्त हो सकता है ,बचा जा सकता है तथा हमारी भविष्य की कामनाएं भी पूर्ण हो सकती है आधुनिक समय के विद्वानों के द्वारा भी इसे स्वीकार कर लिया गया है की सभी स्वर ,राग मन्त्र ,गति ,नृत्य ,भव ,मुद्रा ,छंद आदि का विकास सामवेद की सहायता से ही हुई पाए है।
4)अथर्वेद-:अथर्वेद के रचियता अथर्वा ऋषि है इनके द्वारा इस वेद में औषद्यि ,विवाह ,प्रेम ,आशीर्वाद ,शाप ,जादूटोना ,तंत्र -मंत्र ,रोग निवारण ,मातृभूमि -माहात्म्य ,अनुसन्धान ,स्तुति के बारे में विस्तृत पूर्वक वर्णन किया गया है तथा इनके द्वारा इस वेद में सामन्य मनुष्य के विचारों ,विश्वासों ,अंधविश्वासो इत्यादि का वर्णन किया गया है तथा इस अथर्वेद में कन्याओं के जन्म कि निंदा करता है साथ में इसमें सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रीओ का गया है।
चारो वेंदो को समझने के लिए छः वेदों की रचना की हुई है जो इस प्रकार है – शिक्षा ,ज्योतिष ,कल्प ,व्याकरण ,निरुत्क तथा छन्द। यदि हमे भारतीय ऐतिहासिक कथाओ का ज्ञान प्राप्त करना है तो सबसे अच्छा वाहक पुराण को ही मन जाता है और इस पुराण के रचियता लोमहर्ष या उनके पुत्र उग्रश्रवा को माना जाता है इन सभी पुराणों की संख्या 18 है जिसमे केवल पांच -वायु ,ब्राम्हण ,विष्णु ,मत्स्य और भगवत में ही राजाओ की वंशवली पायी जाती है और सभी पुराणों में सबसे प्राचीन तथा प्रमाणित पुराण मत्स्यपुराण को ही माना जाता हैअधिकतर पुराणों को संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है तो वही सित्र्यों और शूद्र वर्ग की लोगो को जंहा वेद पढ़ने की अनुमति नहीं दी जाती थी तो वंही इन सभी को पुराण सुनने आज्ञा थी और पुजारियों के द्वारा सभी पुराणों को मंदिरो में ही पढ़ा जाता था महिलाये को सर्वाधिक गिरी हुए स्थिति मैत्रयनि संहिता से प्राप्त होती थी जिसमे जुआ और शराब की भांति स्त्री को पुरुष का तीसरा मुख्य दोष बताया गया था शतपथ ब्राम्हण में महिलाये को पुरुष का अर्धांगिनी कहा गया है।
धन्यबाद
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