औद्योगीकरण का युग class 10 notes in hindi ll औद्योगीकरण का युग नोटस् ll औद्योगीकरण का क्या अर्थ हैं ? ll

 जिस युग में हाथ से बनाए जाने वाले वस्तुओं का बनना कम हुआ और मशीन,तकनीक तथा फैक्ट्री का विकास हुआ तो उस युग को औद्योगीकरण कहते हैं।

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 Hello, दोस्तों तो आज के इस पोस्ट पर है औद्योगीकरण का युग class 10 notes in hindi  को पढ़ेंगे साथ मे हम इसके पुरे ज्ञान को जानेंगे यानी हम औद्योगीकरण का क्या अर्थ हैं उसको भी अच्छे से समझेंगे तो चलिए शुरू करते हैं

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औद्योगीकरण का युग class




इस पोस्ट पर पढ़े जाने वाले topics :-

•औद्योगीकरण का युग

• पूर्व औद्योगिकरण 

•आदि औद्योगीकरण 

•व्यापारियों का ध्यान गांव पर

• स्टेपलर

• कार्डिक

•कारखानों की शुरुआत

• कारखानों से लाभ 

• औद्योगीकरण की रफ्तार

• नए उद्योगपति परंपरागत उद्योगों की जगह क्यों नहीं ले पाए

•हाथ कि श्रम  और वाष्प शक्ति 

•19वीं शताब्दी में यूरोप के उद्योगपति मशीनों की अपेक्षा हाथ के श्रम को अधिक पसंद क्यों करते थे?

•मजदूरों की जिंदगी

• स्पिनिंग जेनी

• स्पिनिंग जेनी का विरोध

• भारतीय कपड़ों का युग

•यूरोपीय कंपनियों के आने से बुनकरों का क्या हुआ 

•ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद बुनकरों की स्थिति

• भारत में मैनचेस्टर का आना

• मैनचेस्टर के आने से भारतीय बुनकरों के सामने आई समस्याएं 

•भारत में कारखानों की शुरुआत 

•प्रारंभिक उद्यमी

•19वीं सदी में भारतीय मजदूरों की दशा 

•जॉबर 

•औद्योगिक विकास का अनूठापन 

•लघु उद्योगों की बहुतायत 

•फ्लाई शटल 

•वस्तुओं के लिए बाजार

               औद्योगीकरण का युग

जिस युग में हाथ से बनाए जाने वाले वस्तुएं का बनना कब हुआ और मशीन तकनीक तथा फैक्ट्री का विकास शुरू हुआ। उस युग को औद्योगिक करण कहते हैं। इसी काल में खेती हारी समाज और औद्वोगीक समाज में बदल गया।

 1707 से 1840 तक के समय को औद्योगिक करण युग कहा जाता है।

                   पूर्व औद्योगिकरण

 यूरोप में सबसे पहले कारखाने लगने से पहले कारखाने लगने से पहले के समय को पूर्व औद्योगिक काल कहा जाता है। इसी समय में गांव में सामान को बनाया जाता है जिसे शहर के व्यापारी खरीदते थे। 

                आदि औद्योगीकरण

यूरोप और इंग्लैंड में फैक्ट्रियों की स्थापना से पहले ही अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए बड़े अवसर पर औद्योगिक करण उत्पादन होने लगा था। बहुत सारे इतिहासकार और औद्योगिक करण के इस चरण को आदि औद्योगीकरण कहते हैं। 

                व्यापारियों का ध्यान गांव पर

शहरों में क्राफ्ट गिल्ड और ट्रेड बहुत ज्यादा शक्तिशाली था और इस प्रकार के संगठन और कीमतों पर अपना नियंत्रण रखते थे। 

वे नए लोगों को बाजार में काम शुरू करने से भी रोकते थे। इसलिए व्यापारी के लिए शहर में नया व्यवसाय शुरू करना मुश्किल होता था, इसलिए वह गांव की ओर रुख किए थे।

                         स्टेपलर

ऐसा व्यक्ति जो रेशों के हिसाब से उन को स्टेपलर छटता है। 

                         फुलर

ऐसे व्यक्ति जो फूल करता यानी चुनन्तो के सहारे कपड़े को समेटता है।

                       कार्डिंग

वैसी प्रक्रिया जिसमें कपास या उन जैसे देशों को कताई के लिए तैयार किया जाता है, उसे कर्डिग कहते हैं।

              कारखानों कि शुरूआत

1.)सबसे पहले इंग्लैंड में कारखाना 1730 के दशक में बनना शुरू हुआ। 
2.)18वीं सदी के आखिर तक पूरे इंग्लैंड में जगह-जगह पर कारखाने दिखने लगे थे।
3.)इसी समय का पहला प्रत्येक कपास था। 1760 में ब्रिटेन में 2.5 मिलियन पाउंड का कपास आयात होता था। 
4.)मजदूरों की कार्यकुशलता बढ़ गई। मशीनों की सहायता से प्रत्येक मजदूर अधिक मात्रा में और बेहतर उत्पाद बनाने लगा 
5.)औद्योगिकरण की शुरुआत मुख्य रूप से सूती वस्त्र उद्योग से हुए 

               औद्योगिकरण की रफ्तार

1.)औद्योगिकरण का मतलब सिर्फ कारखानों का लगना नहीं था। इस काल में सूती वस्त्र कपास, उद्योग एवं लोहा तथा स्टील में भी काफी तेजी से बदलाव हुए 2.)औद्योगिकरण के पहले दौर में सूती कपड़ा सबसे पहले क्षेत्रक में हुआ था। 
3.)रेलवे के प्रसार के बाद लोहा इस्पात उद्योग में भी तेजी से वृद्धि हुआ। 
4.)1873 आते-आते ब्रिटेन से लोहा और इस्पात के निर्यात की कीमत 78 मिलीयन पाउंड हो गई थी।

 नए उद्योगपति परंपरागत उद्योगों की जगह क्यों नहीं ले पाए

 1.) द्औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की संख्या कम थी। 
2.) कपड़ा उद्योग गतिशील उद्योग था जो की कापी मांगी थी। 

           हाथ कि श्रम और वाष्प शक्ति 

उस समय में मजदूरों की कोई कमी नहीं थी। इसलिए मजदूरों की किल्लत में कोई परेशानी नहीं था, इसलिए वहां की मशीनों में पूंजी लगाने की अपेक्षा श्रमिकों से काम लेना ही बेहतर माना जाता था।

 मशीन से बनी वस्तु एक जैसी होती थी। वह हाथ से बनी वस्तु की गुणवत्ता और सुंदरता का मुकाबला नहीं कर सकती थी और अमीर लोग हाथ से बनी वस्तु का इस्तेमाल ज्यादा करना पसंद करते थे,

 लेकिन 19वीं सदी में अमेरिका का अलग ही हाल था। वहां पर मजदूरों की कमी के कारण मशीनीकरण ही एकमात्र रास्ता बचा था।

19वीं शताब्दी में यूरोप के उद्योगपति मशीनों की अपेक्षा हाथ के श्रम को अधिक पसंद क्यों करते थे?

1.)ब्रिटेन में उद्योगपतियों को मानव श्रम की कमी नहीं थी। 

2.)वह मशीन इसलिए नहीं लगाना चाहते थे क्योंकि मशीन में अधिक पूंजी लगाना पड़ता था।

3.)कुछ मौसमी उद्योगों के लिए उद्योगों में श्रमिकों द्वारा हाथ से काम करवाना अच्छा समझते थे।

4.)बाजार में अक्सर बारीक डिजाइन और खास अकारो वाली चीजों की मांग रखी थी जो कि हस्त कौशल पर निर्भर थी। 

                   मजदूरों की जिंदगी

1.)मजदूरों का जीवन दैनिक था। श्रम की शुरुआत के कारण से नौकरियां की कमी थी।

2.)नौकरियां मिलने की संभावना जान पहचान पर निर्भर करती थी। 

3.)बहुत से मजदूरों को मौसमी काम के कारण लंबे समय तक खाली बैठना पड़ता था। 

4.)मजदूरों की आय के वास्तविक मूल्य से भारी कमी थी, इसलिए गरीबी था

                      स्पिनिंग जेनी

 यह सूती काटने की मशीन थी जो जेम्स हरगीवजेलीवर्स के द्वारा 1764, इसमें में बनाया गया

          स्पिनिंग जेनी का विरोध

 19 वी सदी के मध्य तक अच्छे समय में भी शहरों की आबादी का लगभग 10% हिस्सा अधिक गरीब था, जिसके कारण बेरोजगारी 33% से 75% के बीच हो गई थी।

 बेरोजगारी की आशंका से मजदूर नई प्रौद्योगिकी से जुड़ने लगे। जब उन उद्योग में स्पिनिंग जेनी मशीन का इस्तेमाल शुरू किया गया तो मशीनों पर हमला होने लगे। 1840 के दशक के बाद रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई क्योंकि सड़कों को चौड़ा किया गया है। रेलवे स्टेशन बने रेलवे लाइनों का विस्तार हुआ।

       भारतीय कपड़ो का युग

 मशीन उद्योग से पहले का योग अंतर्राष्ट्रीय बाजार में। भारतीय रेशमा और सूती वस्त्र का दबदबा था। उच्च किस्म का कपड़ा भारत से निर्णय और फारसी सौदागर पंजाब से अफगानिस्तान तक लेकर जाते थे। 

सूरत, हुगली और वसूली प्रमुख बंदरगाह थे और इसी नेटवर्क से विभिन्न प्रकार के व्यापारी व्यापार करते थे। 

दो प्रकार के व्यापारी थे। आपूर्ति सौदागर और निर्यात सौदागर 

       मशीन उद्योग के बाद का युग

1750 के दशक तक भारतीय सौदागरों के नियंत्रण वाला नेटवर्क टूटने लगा और यूरोपीय कंपनियों की ताकत बढ़ने लगी। सूरत और हुगली जैसे बंदर ग्रह कमजोर पड़ गए।

 मुंबई तथा कोलकाता एक नए बंदरगाह के रूप में जो के व्यापार को यूरोपीय कंपनियों के द्वारा नियंत्रित किया जाता था। जो कि यूरोपीय जहाजों के द्वारा होता था।

 शुरुआती में भारत के पास कपड़ा व्यापार में कोई कमी नहीं था, लेकिन 18वीं सदी तक यूरोप में भी भारतीय कपड़ों की मांग भारी मात्रा में बड़ी।


यूरोपीय कंपनियों के आने से बुनकरों का क्या हुआ

अंग्रेजों द्वारा स्थापित बुनकर बेहद अच्छी स्थिति में थे क्योंकि वे उनका उत्पाद खरीदने वाले बहुत खरीदार थे और वे अपने वस्तु को अधिक कीमत पर बेचते थे।

ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद बुनकरों की स्थिति

 1.)भारतीय व्यापार पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार हो गया।

2.)कपड़ा के व्यापार में सक्रिय व्यापारियों और दलालों को खत्म करके बुनकरों पर प्रत्यक्ष नियंत्रण 

3.)बुनकरों को अन्य खरीदारों के साथ कारोबार करने पर पाबंदी लगा दी। 

4.)बुनकरों और गुमास्ता के बीच अक्सर टकराव होते रहता था। 

5.)बुनकरों को कंपनी से मिलने वाली कीमत बहुत ही कम होती है। 

        भारत में मैनचेस्टर का आना

19 वी सदी की शुरुआत से ही भारत से कपड़ों के निर्यात में कमी आने लगी थी।

 ईस्ट इंडिया कंपनी पर भी इस बात के लिएथा दबाव डाला गया कि वह ब्रिटेन में बनी चीजों को भारत के बाजारों में बेचे

 18वीं सदी के अंत तक भारत में सूती कपड़ों के आयात नहीं के बराबर होने लगा था। 

मैनचेस्टर के आने से भारतीय बुनकरों के सामने आई समस्याएं 

1.)नियति बाजार का दह जाना

2.)स्थानीय बाजार का संकुचित हो जाना 

3.)अच्छी किस्म का कपास नहीं मिल पाना। 

4.)ऊंची कीमत पर कपास खरीदने के लिए मजबूर होना 

5.)19वीं सदी के अंत तक भारत में फैक्ट्रियां द्वारा उत्पादन शुरु और भारतीय बाजार में चीनी उत्पादन की बाढ़ आई। 

    भारत में कारखानों की शुरुआत

मुंबई में पहला सूती कपड़ा मिल 1807 में बना जिसमें उत्पादन 2 वर्षों के बाद शुरू हो गया और 1862 ईस्वी तक 4 मील भी चालू हो गए। 

इसी समय में बंगाल में जूट मिल भी शुरू हुआ और अहमदाबाद में पहला सूती मिल चालू हुआ। 

      प्रारंभिक उद्यमी

1.)यह सभी चीन के साथ शामिल थे। उन्होंने कुल 14 कंपनियां लगाए। 

2.) मुंबई में डीन शॉ पेरिट और जे एन टाटा

 3.) सेठ हुकुमचंद ने कोलकाता में पहली जूट मिल लगाए।

4.) जी डी बिरला ने भी यही किया। 

            मजदूर कंहा से आए

1.)अधिकतर मजदूर आस पास के जिलों से आए 2.)अधिकतर वे मजदूर थे जो किसान और कारीगर थे जिन्हें गांव में काम नहीं मिलता था।

  19वीं सदी में भारतीय मजदूरों की दशा 

1.)1901 में भारतीय फैक्ट्रियों में 584000 के लगभग मजदूर काम करते थे

2.)और यही संख्या 1946 तक 2436000 हो गया था। अधिकतर मजदूर अस्थाई तौर पर रखे जाते थे। 

3.)फसलों की कटाई के समय गांव लौट जाते थे। नौकरियां मिलना कठिन था।

                         जॉब्बर

 उद्योगपति ने मजदूरों की भर्ती के लिए जॉब रखा था जो अब और पुराना विश्वास एक कर्मचारी होता था। वह गांव के लोगों को शहर में लाते थे और उन्हें विश्वास दिलाते थे कि उन्हें शहर में बसने में मदद करेंगे।

     औद्योगिक विकास का अनूठापन

 भारत में औद्योगिक उत्पादन को बनाए रखने वाले यूरोपीय कंपनियां कुछ खास उत्पादन में ही दिलचस्पी रखती थी। उन चीजों का निर्यात करते थे जो भारत में बेचे जा सके। ऐसे चाय कॉफी, नील इत्यादि जो मैनचेस्टर उत्पाद से प्रत्यक्ष प्रदान नहीं करते थे जैसे धागा जो कि आयात नहीं किया जाता था तो कपड़े की बजाय धागे का उत्पादन किया गया।

 20वीं सदी से पहले भारत में औद्योगिक करण का रुख बदला लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया गया जिसके जिसके कारण कपड़ा उत्पादन शुरू हुआ और आगे चलकर चीन के धागों का निर्यात में कमी आया। 


प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान भारत में औद्योगिक उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी हुई नई नई कंपनियों की स्थापना की गई क्योंकि ब्रिटिश मिल युद्ध के लिए उत्पादन में व्यस्त थे

          लघु उद्योगों की बहुतायत

 उद्योग में वृद्धि के बाद भी अर्थव्यवस्था में बड़े उद्योगों का से और बहुत कम था।

 देश के बाकी हिस्सों में लोहा उद्योग का बोलबाला था। कामगारों का एक छोटा सा हिस्सा है। रजिस्टर कंपनियों में काम करता था। 

20 वीं सदी में हाथ से होने वाले उत्पाद में इजाफा हुआ। हथकरघा उद्योग में लोगों ने नई टेक्नोलॉजी को अपनाया बुनकरों ने। अपने कर्मों में फ्लाई शटल का इस्तेमाल शुरू किया। 

                     फ्लाई शटल

रस्सी और पुलियों के जरिए चढ़ने वाला एक प्रारंभिक यांत्रिक और 1000 है जिसका उपयोग बुनाई के लिए किया जाता है।

                वस्तुओं के लिए बाजार

 ग्राहकों को लुभाने के लिए उत्पादक कई तरीकों को अपनाते थे जैसे विज्ञापन

 मैनचेस्टर के उत्पादक अपने लेवल पर उत्पादन का स्थान जरूर दिखाते थे। लेवल पर सुंदर चित्र भी थे, जिसमें भारतीय देवी और देवताओं की फोटो लगी होती थी।

 19 वी सदी के अंत तक उत्पादकों ने अपने उत्पादों को प्रसिद्ध कराने के लिए कैलेंडर बांटने भी शुरू कर दिए थे।

 भारत के उत्पादक अपने विज्ञापनों में अक्सर राष्ट्रवादी संदेशों कीकी प्रमुखता देते थे ताकि अपने ग्राहकों से सीधे तौर पर जुड़ सके 

आपने क्या सिखा

1707 से 1840 तक के समय को औद्योगिक करण युग कहा जाता है।

• सबसे पहले इंग्लैंड में कारखाना 1730 के दशक में बनना शुरू हुआ

•औद्योगिकरण के पहले दौर में सूती कपड़ा सबसे पहले क्षेत्रक में हुआ था। 

•1873 आते-आते ब्रिटेन से लोहा और इस्पात के निर्यात की कीमत 78 मिलीयन पाउंड हो गई थी।

•सेठ हुकुमचंद ने कोलकाता में पहली जूट मिल लगाए।

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