ध्वनि एक प्रकार का विक्षोभ है जिसे गमन करने के लिए माध्यम (ठोस, द्रव और गैस ) की आवश्यकता पड़ती है और ध्वनि कंपन करते हुए वस्तु से उत्पन्न होती है।
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Hello, दोस्तो एक बार फिर मै आपके लिए हाजिर हूँ और इस बार मैं अपने इस पोस्ट पर ध्वनि class 9th के बारे में पूरी जानकारी को बताया हैं तो चलिए शुरू करते हैं….
इस पोस्ट पर पढ़े जाने वाले topics…
•ध्वनि किसे कहते हैं
• ध्वनि को उत्पन्न करने के तरीके
• तरंग किसे कहते हैं
• तरंग के प्रकार
• संपीडन का परिभाषा
• विरलन का परिभाषा
• ध्वनि तरंग के अभिलक्षण
• तारत्व का परिभाषा
• प्रबलता किसे कहते हैं
• टोन का परिभाषा
• शोर
• संगीत
• प्रघाती तरंगे
• ध्वनि का परावर्तन
• ध्वनि का परावर्तन का उपयोग
• प्रतिध्वनि का परिभाषा
• अनुरणन का परिभाषा
• स्टेथोस्कोप
• सोनार
• सोनार का उपयोग
• मानव कर्ण कि संरचना
इन्हे भी जरूर पड़े (खास आपके लिए)
ध्वनि किसे कहते हैं
ध्वनि एक प्रकार का विक्षोभ है जिसे गमन करने के लिए माध्यम (ठोस, द्रव और गैस ) की आवश्यकता पड़ती है और ध्वनि कंपन करते हुए वस्तु से उत्पन्न होती है।
जैसे :- ढोलक, गिटार की रस्सी को तानने से कंपन उत्पन्न होता हैं
ध्वनि को उत्पन्न करने के तरीके
ध्वनि के उत्पन्न करने के तरीके इस प्रकार हैं
1.) कंपित वस्तु से
2.) कंपित वायु से
3.) वस्तुओं के घर्षण से
4.) वस्तुओं ko रगड़कर
तरंग किसे कहते हैं
तरंग एक प्रकार का विक्षोभ होता है जोकि माध्यम में गति करता है और ऊर्जा को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक लेकर जाता है।
तरंग के प्रकार
तरंग दो प्रकार के होते हैं
1.) अनुप्रस्थ तरंग
2.) अनुधैर्य तरंग
1.) अनुप्रस्थ तरंग :-
जब तरंग गति करते हैं और इनके माध्यम के कण तरंग की दिशा के लंबवत दिशा में कंपन करते हैं तो इस प्रकार के तरंग को अनुप्रस्थ तरंग करते हैं।
जैसे-: जलीय तरंगे, भूकंप के दौरान, उत्पन्न तरंग, पृष्ठ तरंग इत्यादि
2.) अनुधैर्य तरंग :-
जब तरंग गति करते हैं तो इन के माध्यम के कण तरंग के दिशा के समांतर रूप से कंपन करते हैं तो इस प्रकार के तरंग को अनुधैर्य तरंग कहते हैं।
जैसे-: ध्वनि तरंगे, भूकंपीय तरंगे इत्यादि।
संपीडन का परिभाषा
वैसा क्षेत्र जहां पर माध्यम के कारण नजदीक नजदीक जुड़कर उच्च दाब बनाते हैं, उसे संपीड़न करते हैं।
ध्वनि तरंगे एक प्रकार का अनुधैर्य तरंगे होती है और जब एक वस्तु कंपन करती है तो अपने आसपास के वायु को संपीड़ित कर देती है जिससे एक घनत्व या दाब क्षेत्र बन जाता है जिसे संपीडन करते हैं।
जब माध्यम के कारण पीछे की ओर कंपन करते हैं तो एक निम्न दाब क्षेत्रफल का निर्माण होता है जिसे विरलन कहते हैं
ध्वनि तरंग के अभिलक्षण
1) तरंगधैर्य
2) आवृत्ति
3) आवर्तकाल
4) आयाम
5) तरंग वेग
1) तरंगधैर्य :-
दो क्रमागत संपीडन और विरलन की कुल लंबाई को तरंगधैर्य कहते हैं। इसमें तरंग एक पूर्ण दोलन पूरा करने में जितना दूरी तय करता है उसे ही तरंगधैर्य कहते हैं। इसे लैम्डा द्वारा सूचित किया जाता है। जिसका S.I.मात्रक मीटर होता है।
2) आवृत्ति
एक सेकंड में दोलनो की पूर्ण संख्या को आवृत्ति कहते हैं। इसका S.I.मात्रक Hz होता है।
3) आवर्तकाल
एक पूर्ण दोलन होने में लगा समय को आवर्तकाल करते हैं। इस का S.I.मात्रक सेकंड होता है और आवर्तकाल को T द्वारा सूचित किया जाता है जोकी आवृत्ति के समानुपाती होता है।
4) आयाम
किसी माध्यम के कणों द्वारा मूल स्थिति से तय की गई अधिकतम दूरी को आयाम कहते हैं। इसे A द्वारा सूचित किया जाता है। और इस का S.I.मात्रक मीटर होता है।
5) तरंग वेग
एक तरंग द्वारा एक सेकेंड में तय की गई दूरी को तरंग वेग कहते हैं। इसका S.I.मात्रक m/s होता है।
तारत्व का परिभाषा
ध्वनि का वह गुण जो कि ध्वनि तरंगों के कंपन की आवृत्ति द्वारा निर्धारित की जाती है। उसे तारत्व कहते हैं।
यानी ध्वनि का तारत्व ध्वनि के आवृत्ति पर निर्भर करता है। जोकी आवृत्ति के समानुपाती होता है।
यही कारण है कि औरतों की आवाज पतली होती है क्योंकि उनका तारत्व ज्यादा होता है और उनकी स्वर यंत्र की आवृत्ति अधिक होती है।
प्रबलता किसे कहते हैं
प्रबलता ध्वनि का वह अभिलक्षण है जिसके कारण कोई ध्वनि तेज या मंद सुनाई देती है या कानों में प्रति सेकेंड पहुंचने वाली ध्वनि ऊर्जा के मापन को ही प्रबलता कहते हैं जोकि तरंग के आयाम पर निर्भर करता है। प्रबलता को डेसीबल से मापा जाता है।
टोन का परिभाषा
एकल आवृत्ति वाले ध्वनि को टोन कहते हैं।
स्वर का परिभाषा
ध्वनियों के मिश्रण को स्वर करते हैं।
शोर का परिभाषा
वैसे ध्वनि जो हमारे कानों को प्रिय नहीं लगती, उसे शोर कहते हैं।
संगीत का परिभाषा
वैसे ध्वनि जो हमारे कानों को प्रिय लगते हैं, उसे संगीत कहते हैं।
प्रघाती तरंगे
जब पराध्वनि (पराध्वनि का मतलब उस चाल से है जो ध्वनि की चाल से अधिक होती है) चाल उत्पन्न होता है तो वायु में बहुत तेज आवाज पैदा करती है जिसे प्रघाती तरंग करते हैं।
ध्वनि का परावर्तन
जब ध्वनि तरंगें किसी कठोर सतह से टकराती है तो वह वापस लौटती है जिसे ध्वनि का परावर्तन कहते हैं।
ध्वनि के परावर्तन के दो नियम हैं।
1.)आपतित ध्वनि तरंग, परावर्तित ध्वनितरंग और अभिलंब तीनों एक ही तल में होता है।
2.)ध्वनि का आपतन कोण और ध्वनि का परावर्तन कोण का मान बराबर होता है।
ध्वनि का परावर्तन का उपयोग
इसका उपयोग इस प्रकार से किया जाता है
1.)ध्वनि तरंगों का आयाम जुड़ जाने से ध्वनि की प्रबलता बढ़ाने में
2.)मेगा फोन या लाउडस्पीकर जैसे यंत्रों में
प्रतिध्वनि का परिभाषा
ध्वनि के परावर्तन के पश्चात ध्वनि का बार-बार सुनाई पड़ना ही प्रतिध्वनी कहलाता आता है। प्रतिध्वनी को हम तब ही सुन पाएंगे जब मूल ध्वनि और प्रतिध्वनि के बीच समय 0.1 सेकेंड का अंतर हो प्रतिध्वनी तभी उत्पन्न होता है
अनुरणन
जब यह किसी कठोर सतह से टकराता है। जब किसी ऐसी जगह जैसे -: बड़े हॉल, हॉल की दीवारें में ध्वनि उत्पन्न होता है और यहां पर ध्वनि का अस्तित्व बना रहता है तो इसे अनुरणन कहते हैं
स्टेथोस्कोप
यह एक ऐसा यंत्र है जो मानव शरीर के अंदर हृदय और फेफड़ों में उत्पन्न होने वाली ध्वनि को सुनने में काम आता है।
सोनार
यह एक ऐसी युक्ति है जो पानी के अंदर पिंडों की दूरी , दिशा तथा चाल को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।
क्रियाविधि :-इसमें एक प्रेषित तथा संसूचक लगा होता है जोकि जहाज के तली में लगा रहता है। जब प्रेषित पराधवनि तरंगे उत्पन्न होती है तो ये पानी तरंगे जल में चलती है और समुंद्र के तल में पिंडों से टकराकर परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती है और विद्युत संकेतों में बदल दी जाती है।
सोनार का उपयोग
• समुद्र की गहराई मापने में
• जल के नीचे चट्टानों, पंडुब्बी का पता लगाने में किया जाता हैं
यह एक प्रकार का संवेदी अंग हैं जिसकी सहायता से हम ध्वनि को सुन पाते हैं
मानव कर्ण तीन भागों में बटाँ होता हैं
1.) बाह्य कर्ण
2.) मध्य कर्ण
3.) अंत कर्ण
1.) बाह्य कर्ण :-
बाह्य कान को कान को कर्ण पल्लव भी कहते हैं जो आसपास के ध्वनि को इकट्ठा करता है जो ध्वनि श्रवण नलिका से गुजरता है।
2.) मध्य कर्ण :-
मध्य कर्ण में तीन हड्डियां मुगद्रक, निहाई और वलयक एक-दूसरे से जुड़ी होती है। मुगद्रक का स्वतंत्र हिस्सा कर्नपट तथा वलयक का अंतकर्ण के अंडकार छिद्र कि हिल्ली से जुड़ा होता हैं
3.) अंत कर्ण:-
कान के इस भाग में एक कर्णवर्ण नलिका होत है जो अंडाकार छिद्र से जुड़ा होता है और इसमें द्रव भरा होता है जिसमें तंत्रिका कोशिका होता है कर्णवर्ण का दूसरा भाग श्रवण तंत्रिका से जुड़ा होता है जिसका संपर्क मस्तिष्क से होता है।
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आपने क्या सिखा :-
• ध्वनि एक प्रकार का विक्षोभ हैं
• ध्वनि को गमन करने के लिए माध्यम की जरूरी होती हैं
• तरंग भी एक प्रकार का विक्षोभ हैं
• तरंग दो प्रकार के होते हैं
• तरंगधैर्य, आवृत्ति, आयाम, आवर्तकाल और तरंग वेग ये सब ध्वनि के अभिलक्षण होते हैं
• आवर्तकाल आवृत्ति का समानुपति होता हैं
Note -: आशा करता हु की आपको ये पोस्ट ध्वनि class 9th पसंद आई होगी अगर आप इस पोस्ट के बारे में कुछ बताना चाहते हैं तो हमे comment जरूर करे और इस पोस्ट को अपने दोस्तों के बीच जरूर share करे