परमाणु की संरचना नोटस || परमाणु की परिभाषा, संरचना और प्रकार


किसी पदार्थ का वह सबसे छोटा कण जो प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में नहीं भाग ले
सकता हैं उसे परमाणु कहते है |

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तो hellow दोस्तों, अगर आप भी परमाणु की संरचना notes को खोज रहे हैं तो
आप एकदम सही जगह पर आ चुके हैं जँहा पर मैंने अपने इस पोस्ट पर
परमाणु कि संरचना नोटस को पुरे जानकारी के साथ बताया हैं तो चलिए शुरू
करते हैं आज के ज्ञान को… 

      परमाणु कि परिभाषा :- 


      किसी पदार्थ का वह सबसे छोटा कण जो प्रकृति में स्वतंत्र अवस्था में नहीं भाग ले
      सकता हैं उसे परमाणु कहते है |
      परमाणु की संरचना नोटस



      परमाणु तीन प्रकार के कणों से मिलकर बने होते हैं… 


      a) इलेक्ट्रॉन 
      b) प्रोटॉन 
      c) न्यूट्रॉन

      a) इलेक्ट्रॉन का खोज :- 


      19वीं शताब्दी की शुरुआत में जॉन डाल्टन ने परमाणुवाद का सिद्धांत दिया जिसमें
      उन्होंने बताया कि पदार्थ सुक्ष्म अविभाज्य कणों से मिलकर बने होते हैं जिससे
      परमाणु कहते हैं लेकिन सन 1897 ईo में ब्रिटिश के वैज्ञानिक जे जे थॉमसन ने
      क्रुक्स नलिका पर कार्य करते हुए एक ऋणावेशित मौलिक कण की खोज की जिसे इलेक्ट्रॉन
      का है।

      जिस नलिका पर थॉमसन ने प्रयोग किया था, वह नलिका शीशे की बनी थी और इस नलिका में
      दो इलेक्ट्रोड जुड़े थे। इस नलिका से गैस को बाहर निकालने के लिए एक वेक्यूम पंप
      भी लगाया गया था। जब नली में कम दबाव था तो उस इलेक्ट्रोड के सिरे पर 10000 वोट
      से जुड़े थे तो उस समय पाया गया कि कैथोड से एक प्रकार की रोशनी निकल रही है और
      यह रोशनी सीधी रेखा में चल रही थी जो एनोड प्लेट के बीच में स्थित छोटे छिद्र से
      कुछ किरणें आगे धनात्मक प्लेट की ओर मुड़ जाती है जिससे पता चला कि ये कण ऋण
      आवेशित है चूँकि ये कैथोड से उत्पन्न थे, इसलिए इसे कैथोड किरणें कहा गया। इस
      प्रक्रिया को बार-बार दोहराने पर यही परिणाम पाया गया। इसलिए इन कणों का नाम
      इलेक्ट्रॉन रख दिया गया।

      इलेक्ट्रोन पर आवेश = -1.6×10^-19c
      इलेक्ट्रोन का द्रव्यमान = 9.1×10^-32kg

      b) प्रोटॉन कि खोज :-


       यूजीन गोल्डस्टीन के द्वारा सन 1886 ईo में एनोड किरण  प्रयोग
      में  प्रोटॉन को  हाइड्रोजन के  रूप में सबसे पहले देखा गया
      था। लेकिन 1917-1920 ई0 में जब रदरफोर्ड  ने अपना  अल्फा
      किरण  का प्रयोग किए तो परमाणु के नाभिक में मौजूद धनात्मक कण 
      प्रोटॉन की खोज की जिसे प्रोटोन माना गया।

      c) न्यूट्रॉन  :- 


      शुरू के समय में केवल यही मालूम था कि परमाणु के नाभिक में केवल प्रोटोन ही पाया
      जाता है और इसके चारों इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं


      और न्यूट्रॉन की खोज से पूर्व वैज्ञानिक मानते थे कि किसी भी परमाणु का भार उसमें
      उपस्थित प्रोटोन के भार के बराबर होता है । 


      लेकिन जब हाइड्रोजन और हीलियम के द्रव्यमान को पता लगाया गया तो कायदे के मुताबिक
      हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हाइड्रोजन के द्रव्यमान का दोगुना होना चाहिए।


      लेकिन उन्होंने देखा कि हीलियम परमाणु का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के
      द्रव्यमान से 4 गुना था। तब फिर अन्य तत्वों के परमाणु द्रव्यमान की तुलना किया
      गया तो पता चला कि उनका भी द्रव्यमान उसमें उपस्थित प्रोटॉन के द्रव्यमान से अधिक
      है।


       अब इससे पता चला कि परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन के अलावा कोई और अन्य कारण
      भी है इसलिए परमाणु का द्रव्यमान दोगुना हो जा रहा है।


      इस परेशानी को हल करने के लिए सबसे पहले ब्रिटिश वैज्ञानिक जेम्स चैडविक ने 1932
      ईo में एक और अब परमाण्विक न्यूट्रॉन को खोज की ।

      न्यूट्रॉन की खोज का प्रयोग :- 


      सबसे पहले जेम्स चैडविक ने पोलोनियम स्त्रोत की मदद से बेरिलियम सीट पर अल्फा
      विकिरण को बहुछार कराया जिससे एक अपरिवर्तित विकिरण प्राप्त हुआ। उसके बाद इस
      विकिरण को पैराफिन मोम पर परावर्तित कराया था। तब पैराफिन मोम से निकले गए
      प्रोटोन को आयनीकरण कक्ष की  सहायता   से देखा गया  और
      फिर  उसके  बाद प्रोटोन की  सीमा को मापा  गया 
      तथा   चैडविक   द्वारा अपरिवर्तित  विकिरण और 
      कई  गैसों के  परमाणुओं के बीच अध्ययन किया गया तो यह 
      निष्कर्ष  निकला  कि असामान्य रूप से विकिरण में एक प्रोटोंन के समान
      कोई और एक अनावेशित कण शामिल है जिसे बाद में न्यूट्रॉन कहा गया।

      परमाणु मॉडल :- 


      परमाण्विक कणों की खोज के बाद विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक ने अपना मॉडल प्रस्तुत
      किया जो परमाणु से संबंधित है जो कुछ इस प्रकार है
      इन्हे भी जरूर पढ़े (खास आपके लिए) 


      a) थॉमसन का परमाणु मॉडल 
      b)रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल 
      c)बोर
      का परमाणु मॉडल

      a) थॉमसन का परमाणु मॉडल  :- 


      जे जे थॉमसन ने सन 1883 ईo में सर्वप्रथम एक परमाणु मॉडल प्रस्तुत किए जिसके
      अनुसार “परमाणु एक ध्यान आवेशित गोला है, जिस पर इलेक्ट्रॉन चिपके रहते हैं।”
      इन्होंने परमाणु ने धनआवेश को तरबूज के खाने वाला लाल भाग को तथा इसके बीच को
      इलेक्ट्रॉन बताया तथा 


      इसमें इसमे धन आवेश का मान सम्मान होता है। यानी परमाणु विद्युतीय रूप से उदासीन
      है।

      b)रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल  :- 


      रदरफोर्ड ने अपना परमाणु मॉडल देने से पूर्व उन्होंने सन् 1991 ई0 में एक अल्फा
      कणों पर एक प्रयोग किया जिसे अल्फा किरण का प्रकीर्णन प्रयोग कहते हैं। 


      इस प्रयोग में जब उन्होंने बहुत सारे अल्फा कणों को सोने की पन्नी पर बहूछार
      कराया तो निम्नलिखित परिणाम सामने आए।

      i) अधिकांश अल्फा कण अपने मार्ग से बिना किसी विचलन के सीधे बाहर निकल गए जिससे
      मालूम चला कि परमाणु का अधिकतर भाग खाली होता है। 


      ii) बहुत कम अल्फा का अपने पथ से विचलित हो गए जिससे मालूम चला कि परमाणु के बीच
      में कोई कण मौजूद है।


       iii) बहुत बहुत कम अल्फा कण टकराकर पुनः उसी पथ पर वापस लौट आए जिससे पता
      चला कि परमाणु का सारा द्रव्यमान एक छोटे से भाग में निहित है।

      रदरफोर्ड के परमाणु के नाभिकीय के मॉडल के अनुसार :- 
      रदरफोर्ड ने अपने अल्फा कणों के प्रयोग के बाद बताया कि 
      •परमाणु का संपूर्ण द्रव्यमान उसके नाभिक में निहित होता है। 
      •परमाणु का अधिकतर भाग खाली होता है। 
      •नाभिक का आकार परमाणु के आकार से काफी कम होता है।

       •इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्तीय पथ पर चक्कर लगाते हैं, जिसे
      कक्षाएं करते हैं।

       रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल का दोष :- 

      •रदरफोर्ड ने बताया कि इलेक्ट्रॉन नाभिक चारों ओर  चक्कर  लगाता
      है।  यह सत्य नहीं है  क्योंकि  इस प्रकार होता तो परमाणु कभी भी
      स्थाई नहीं हो सकता है।

      •रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल में कक्षाओं में उपस्थित इलेक्ट्रॉन कि संख्या को
      निश्चित नहीं की गई।

      c)बोर का परमाणु मॉडल :- 


      रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल को संशोधित करके निल्स बोर ने अपना परमाणु मॉडल सन 1912
      ईo में प्रस्तुत किया जिसमें उन्होंने बताया कि… 


      •परमाणु के चारों ओर इलेक्ट्रॉन निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगाते हैं।


       •जब इलेक्ट्रॉन इन निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं तो इलेक्ट्रॉन अपनी
      उर्जा का विकिरण नहीं करते हैं।
       

      •इलेक्ट्रॉन एक कक्षा से दूसरे कक्षा पर कूद सकता है और जब इलेक्ट्रॉन आंतरिक
      कक्षा से बाहरी कक्षा में कूदता है तो ऊर्जा का अवशोषण होता है। लेकिन इलेक्ट्रॉन
      बाहरी कक्षा से आंतरिक कक्षा में कूदता है तो ऊर्जा का उत्सर्जन नहीं होता है।

      विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन का वितरण :-


       परमाणु के विभिन्न कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन का वितरण बोर बरी नियम के अनुसार
      होता है जो इस प्रकार है

      • किसी भी कक्षा में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n^2 होता है। जहां n=बराबर
      कक्षा की संख्या

      • प्रथम कक्षा K में दो इलेक्ट्रॉन होता है।
      • द्वितीय कक्षा L में 8 इलेक्ट्रॉन होता है। 
      •तीसरा कक्षा M 18 इलेक्ट्रॉन होता है।


            तत्वों की परमाणु संरचना 


      परमाणु संख्या
      इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
      द्रव्यमान संख्या 
      समस्थानिक 
      समभारिक 
      समन्यूट्रॉनिक 
      संयोजकता


                          परमाणु
      संख्या 


      परमाणु के नाभिक में उपस्थित वोटरों की कुल संख्या को परमाणु संख्या कहते हैं।
      इसे Z द्वारा सूचित किया जाता है।


                     इलेक्ट्रॉनिक विन्यास


      किसी भी परमाणु के विभिन्न कक्षा में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को इलेक्ट्रॉनिक
      विन्यास कहा जाता है।



                         
      द्रव्यमान संख्या


      परमाणु किसी भी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटोनो की  संख्या 
      तथा  न्यूट्रॉन  की  संख्या  के  योगफल  को
      द्रव्यमान संख्या कहते हैं। द्रव्यमान संख्या को A द्वारा सूचित किया जाता
      हैं 

      द्रव्यमान संख्या = प्रोटोनो की संख्या +न्यूट्रोनो कि संख्या



                           
          समस्थानिक


      एक ही तत्व के वे परमाणु जिसकी परमाणु संख्या समान किंतु द्रव्यमान संख्या
      अलग-अलग होती है, उसे समस्थानिक कहते हैं।

       समस्थानिक के गुण 
      •इलेक्ट्रॉन की संख्या समान होती है।
      • किसी भी तत्व के समस्थानिकओं के भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं।

       समस्थानिक का उपयोग 
      •यूरेनियम के समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी में किया जाता है। 
      •कैंसर के उपचार में कोबाल्ट समस्थानिक का उपयोग किया जाता है।
      • घेंघा के इलाज में आयोडीन समस्थानिक का उपयोग किया जाता है। 


                           
        समभारिक


       एक ही तत्व के वे परमाणु जिसके परमाणु संख्या अलग-अलग किंतु द्रव्यमान
      संख्या समान होती है, उसे समभारिक कहते हैं।
                     


                         
      समन्यूट्रॉनिक


       अलग-अलग तत्व के वे परमाणु जिनके इलेक्ट्रॉन की संख्या समान होती है, किंतु
      द्रव्यमान संख्या और परमाणु संख्या अलग-अलग होती है।  हैं समन्यूट्रॉनिक
      कहते हैं


                           
       संयोजकता


       किसी तत्व के परमाणु के द्वारा इलेक्ट्रॉन ग्रहण या त्याग करने की क्षमता
      को संयोजकता कहते हैं
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