माइट्रोकांड्रिया किसे कहते हैं।। माइटोकांड्रिया का कार्य तथा खोजकर्ता ।।

 नमस्ते दोस्तो तो आज के इस पोस्ट में हम जानेगे की माइटोकांड्रिया किसे कहते है साथ मे यह भी जानेगे की माइटोकांड्रिया का कार्य तथा खोजकर्ता कौन है तो चलिए friends पोस्ट को शुरू करते है और समझते है कि कोशिका के इस कोशिकांग का क्या काम होता है 

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इस post पर पढें जाने वाले topics :-

.माइटोकांड्रिया 

.माइटोकांड्रिया के खोजकर्ता 

माइटोकांड्रिया का आकार 

.माइटोकांड्रिया की संरचना 

.माइटोकांड्रिया में पाए जाने वाले पदार्थ 

.माइटोकांड्रिया का कार्य 



.माइटोकांड्रिया

 माइट्रोकांड्रिया लैटिन भाषा का शब्द है जो कि दो शब्दों मॉइटो और कॉन्द्रिया से मिलकर बना है जिसमें मॉइटो का अर्थ धागा और कॉन्द्रीय  का शाब्दिक अर्थ कनिका होता है  इस प्रकार माइटोकांड्रिया का पूर्ण अर्थ सूत्रकनिक होता है ।

माइट्रोकांड्रिया किसे कहते हैं




.माइटोकांड्रिया के खोजकर्ता 

                         माइटोकांड्रिया की सर्वप्रथम खोज फ्लेमिंग और अल्टमैंन ने किया था, लेकिन फ्लेमिंग ने इसका नाम फाइलिया और ऑल्टमैंन  बायोब्लास्ट दिया।


.तब बाद में कोलिकर ने  साल 1990 में इसे  रेखित पेशी में देखा था।

.फिर जाकर 1897 ईo में सीo बेंडा ने इसे माइट्रोकांड्रिया नाम दिया।

.सर्वप्रथम पादप कोशिकाओं में इसकी उपस्थिति को एफ मिविस ने देखा था।

    


.माइटोकांड्रिया का आकार 

                  माइट्रोकांड्रिया का आकार गोलाकार या धागेनुमा संरचना की होती है। इसकी औसतन लंबाई 5 माइक्रोन से 8 माइक्रोन तक होती है।

     माइट्रोकांड्रिया की एक कोशिका में इसकी संख्या 50 से 5000 तक होती है।


.माइटोकांड्रिया की संरचना 

                         माइट्रोकांड्रिया केवल यूकैरियोटिक कोशिका में ही पाए जाते हैं जबकि प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में माइट्रोकांड्रिया का अभाव होता है।

             माइक्रोएस्टेरिया नामक शैवाल की कोशिका में एक एवं कुछ  एककोशकिय जीवों में 500000 तक इसकी संख्या पाई जाती है।

                            

           माइट्रोकांड्रिया एक दोहोरी झिल्ली युक्त होता है।जिसमें बाहरी झिल्ली चिकनी तथा समतल होती है।जबकी आंतरिक झिल्ली में कई उंगलीनुमा उभार पाए जाते हैं जिसे क्रिस्टी कहते हैं।


क्रिस्टी कि सतह पर असंख्य कण लगे होते हैं और इन कणों को ऑक्सीसोम कहते हैं।


आंतरिक झिल्ली और बाहरी झिल्ली के बीच में 6 से 8 नैनो मीटर की दूरी होती है। क्रिस्टी के कारण माइट्रोकांड्रिया की संरचना गोलाकार और नगण्य होती है।

माइट्रोकांड्रिया में अपने सामान नए माइट्रोकांड्रिया बनाने या स्वतः जनन की क्षमता होती है और यह क्षमता केवल कोशिका द्रव्य के अंदर रहकर ही प्राप्त होता है स्वतंत्र रूप से संभव नही है इसलिये इनको semiautonomous कोशिकांग कहते है 


.माइटोकांड्रिया में पाए जाने वाले पदार्थ 

           माइट्रोकांड्रिया में संगठन रूप में प्रोटीन 65%- 70% तक पाया जाता है। फास्फोलिपिड 25% तक RNA 0.5% तक तथा कुछ मात्रा में डीएनए पाया जाता है।


      माइट्रोकांड्रिया में पाए जाने वाले एंजाइम श्वसन में खाद्य पदार्थों का ऑक्सीकरण करते हैं    


.माइटोकांड्रिया का कार्य 

  माइट्रोकांड्रिया के कार्य निम्न है जो इस प्रकार से है।

1)माइक्रो कंडिया को पावर हाउस कया ऊर्जा घर भी कहा जाता है क्योंकि यह श्वसन के दौरान निकलने वाली ऊर्जा को ATP के रूप में संचित करता है।

2)जब कोशिका को विभिन्न जैविक क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है तो यह ATP एडिनोसिन डायफॉस्फेड अणु तथा ऊर्जा के रूप में टूट जाता है।

3)ऑक्सीफॉस्फोरिलेसन की क्रिया ऑक्सीसोम कणों में होती है जोकि माइटोकांड्रिया की भीतरी झिल्ली पर स्थ्ति होते है 

4)यह क्रेब चक्कर ग्लेकिलएसिस के द्वारा ग्लूकोस अणु में टूट जाता है जिनका ऑक्सीकरण एक चक्रीय पथ के 

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