विद्युत जनित्र एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
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Hello दोस्तों और welcome, तो अगर आप भी google पर विधुत जनित्र का सिद्धांत क्या हैं ? को ढूंढ रहे हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आ चुके हैं जंहा मैंने इस blog post पर बताया हैं की विद्युत जनित्र का सिद्धांत क्या है ? कार्यविधि और संरचना की पूरी जानकारी को बताया हैं.
•इस blog पोस्ट पर के Topics इस प्रकार हैं…
विधुत जनित्र
विधुत जनित्र का सिद्धांत
विधुत जनित्र की संरचना
विधुत जनित्र का कार्यविधि
विधुत जनित्र से संबधित कुछ प्रश्न
विधुत जनित्र
विद्युत जनित्र एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युतीय ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है
विद्युत जनित्र से विद्युत प्राप्त करने के लिए इसके रोटर को किसी बाहरी स्रोत की मदद से घुमाया जाता है जिसके फलस्वरूप विद्युत का उत्पादन हो जाता है।
विधुत जनित्र का सिद्धांत
विद्युत जनित्र विद्युत चुंबकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है और जब किसी कुंडली को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं के लंबवत दिशा में घुमाया जाता है तो उसके सिरों के बीच प्रेरितn विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है और जब कुंडली बंद हो जाती है तो उससे धारा बहने लगती है और इसी धारा को प्रेरित धारा कहते हैं।
विधुत जनित्र की संरचना
विधुत जनित्र के भाग इस प्रकार निम्नलिखित हैं..
1.चुम्बक
2.आर्मेचर
3. सर्पि वलय
4. ब्रुश
1.चुम्बक :-
विद्युत जनित्र में एक आयताकार कुंडली होता है और यह कुंडली दो स्थाई चुंबक के बीच में स्थित होता है जिससे चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है और इस चुंबकीय क्षेत्र की दिशा उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होती है।
2.आर्मेचर :-
आर्मीचर एक प्रकार का आयताकार कुंडली होता है जिसे कच्चे लोहे के क्रोड पर तांबे के तार को लपेटकर बनाया जाता है और इसमें तांबे के फेरों की संख्या ज्यादा होती है। इस कुंडली को चुंबकीय क्षेत्र के बीच में तेजी से घुमाने के लिए वाटर टरबाइन, स्टीम टरबाइन या पेट्रोल इंजन जैसे युक्तियों का उपयोग किया जाता है।
3. सर्पि वलय :-
कुंडली पर लिपटे तारों के दोनों सीरे धातु के दो छल्लो S1 तथा S2 से जुड़े होते हैं जोकि आर्मेचर के साथ-साथ घूमते हैं इन्हीं को सर्पि वलय कहते हैं।
4. ब्रुश :-
सर्पि वलय S1 तथा S2 हमेशा तांबे की बनी तारे B1 तथा B2 को छूती है जिसे ब्रुश कहते हैं और इसका संबंध उस परिपथ से होता है जहां से विद्युत धारा आता है।
विधुत जनित्र का कार्यविधि
जब विद्युत जनित्र में प्रयुक्त दोनों वलय से जुड़े धुरी को इस तरह घुमाया जाता है की कुंडली की भुजा AB ऊपर की ओर और भुजा CD नीचे की ओर गति करती है और फ्लेमिंग के दक्षिण हस्त नियम के अनुसार इन भुजाओं से प्रेरित विद्युत धारा की प्रवाहित होने लगता है और इस प्रकार कुंडली में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होता है।
और यदि कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है तो इन सभी फेरों से उत्पन्न प्रेरित विद्युत धारा एक साथ जुड़कर एक बहुत ही शक्तिशाली विद्युत धारा उत्पन्न करती है जोकि B2 से B1 की ओर गमन करती है
और प्रत्येक आधे घूर्णन के पश्चात CD भुजा, ऊपर की ओर और AB भुजा नीचे की ओर गति करने लगता है जिसके कारण विद्युत धारा की दिशा भी परिवर्तित होकर DCBA की ओर प्रवाहित होने लगती है तथा बाहय परिपथ में B1 से B2 की ओर विद्युत धारा जाने लगता है और प्रत्येक आधे परिवर्तन के बाद क्रमिक रूप से इन भुजाओं की दिशा में परिवर्तन से विद्युत धारा की दिशा भी बदल जाती है जिसे प्रत्यावर्ती धारा या AC धारा कहते हैं।
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