मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (notes)

16वी सदी तक चीन में शहरी परिवेश बढ़ने के कारण छपाई का इस्तेमाल कई कामों में होने लगा।

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Hellow दोस्तों, तो एक बार फिर हम आये हैं मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (notes)  को लेकर जिसके बारे मे हम पुरी गहराई के साथ अध्यनन करेंगे तो चलिए शुरू करते हैं….. 

इस पोस्ट पर के Topics….. 

शुरुआती छपी किताबें 

जापान में छपाई कैसे आया?

यूरोप में मुद्रण का आना

गुटेनबर्ग की प्रिंटिंग प्रेस 

प्लाटेन

मुद्रण क्रांति और उसका असर

धार्मिक विवाद तथा प्रिंट का डर

पढ़ने का जुनून 

मुद्रण, संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

19वीं सदी

प्रिंट तकनीक में सुधार 

किताब बेचने के नए तरीके

भारत का मुद्रण संसार 

पांडुलिपियाँ 

पांडुलिपियाँ के प्रयोग की सीमाएं 

मुद्रण संस्कृति का भारत आना

धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहस

मुस्लिमों ने मुद्रण संस्कृति को कैसे अपनाया 

प्रकाशन के नए रूप 

प्रिंट और महिलाएं 

प्रिंट और गरीब जनता 

प्रिंट और प्रतिबंध

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                शुरुआती छपी किताबें

1.)प्रिंट टेक्नोलॉजी का विकास सबसे पहले जापान कोरिया और चीन में हुआ था।

2.)न में 594 ईसवी के उपरांत ही लकड़ी के ब्लॉक पर स्याही लगाकर कागज पर पेंटिंग की जाती थी। 

3.)उस समय कागज पतले और झिरीदार होते थे।

4.)ऐसे कागजों पर दोनों और छपाई करना मुश्किल था।

5.)एक लंबे समय तक ही चीन का राजतंत्र छपे हुए सामान पर सबसे बड़ा उत्पादक था। चीन के प्रशासनिक तंत्र में सिविल सर्विस परीक्षा द्वारा लोगों की बहाली की जाती थी।

 16 वी सदी तक चीन में शहरी परिवेश बढ़ने के कारण छपाई का इस्तेमाल कई कामों में होने लगा और छपाई केवल बुद्धिजीवियों या अधिकारियों तक ही सीमित नहीं थी बल्कि व्यापारी भी रोजमर्रा के जीवन में छपाई का इस्तेमाल करने लगे ताकि व्यापार से जुड़े हुए आंकड़े रखना में आसानी हो।

कहानी कविताएं जीवनी आत्मकथा छप कर आने लगी और लोग इसके पढ़ने के शौकीन  होने लगे

           जापान में छपाई कैसे आया?

 1.) प्रिंट टेक्नोलॉजी को बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने 768 से 770 के आसपास जापान लाया।

2.)उस समय पुस्तकालय और किताबों की दुकानों में हाथ से छपी किताब और अन्य सामग्रियां भी भरी रहती थी।

3.)किताबें कई विषयों पर उपलब्ध थी।

              यूरोप में मुद्रण का आना

1.)1925 में मार्कोपोलो चीन से मुद्रण का ज्ञान लेकर इटली गया
2.)किताबों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पुस्तक विक्रेता सुलेखक को रोजगार देने लगे।
3.)सिल्क रूट के माध्यम से 11वीं शताब्दी में चीनी कागज यूरोप पहुंचा।

              गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस

 गुटेनबर्ग का प्रिंटिंग प्रेस के पिता व्यापारी थी। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीन देखते आ रहे थे। बाद में उन्होंने पत्थर पर पॉलिश करने की कला सीखे और फिर सुनारी और अंततः उसने शीशे की चित्र आकृतियां में गढ़ने का महारत हासिल किया।

 इन्होंने अपने ज्ञान के बदौलत अनुभव का इस्तेमाल करके नए-नए आविष्कार किए। जैतून प्रेस प्रिंटिंग प्रेस का आदर्श बनी और सांचे का उपयोग अक्षरों की धातुएं आकृतियां को बनाने के लिए किया था।

 गुटेनबर्ग ने 1448 ईस्वी तक अपना एक यंत्र बना लिया और इससे पहली पुस्तक लिखी जो बाइबिल था।

                        प्लाटेन

 लेटरप्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था। बाद में इस्पात का बनने लगा।

         मुद्रण क्रांति और उसका असर

 1.)छापन खाने के आने से एक नया पाठक वर्ग पैदा हुआ।
2.)मुद्रण क्रांति के कारण पहले जो जनता श्रोता थी, अब वह पाठक बन गए।
3.)बाजार किताबों में बैठ गई। 
4.)छपाई से किताबों की कीमत गिरी।

धार्मिक विवाद तथा प्रिंट का डर


1.)अधिकतर लोगों को यह भय था कि मुद्रण पर नियंत्रण नहीं किया गया तो विद्रोही एवं अधार्मिक विचार उत्पन्न होंगे। 
2.)धर्म विरोधियों को सुधारने हेतु रोमन चर्च ने इलेक्ट्रीशियन आरंभ किया।
3.)1558 मे रोमन चर्च ने प्रतिबंधित किताबों की सूची छापी 
4.)धर्म सुधारक मार्टिन लूथर किंग ने अपने लेखों के माध्यम से कुरीतियों का वर्णन किया। 

                  पढ़ने का जुनून

16 वीo और 18वीं सदी में यूरोप में साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ

 पत्रिकाएं, उपन्यास, पंचांग आदि सबसे ज्यादा बिकने लगी।

 छपाई के कारण वैज्ञानिकों और तर्क शास्त्रियों के नए विचार और नई खोज सामान्य लोगों तक। आसानी से पहुंच पाते थे। किसी भी नए आइडिया को अब अधिक से अधिक लोगों के साथ बांटा जा सकता था। 

मुद्रण, संस्कृति और फ्रांसीसी क्रांति

कई इतिहासकारों का मानना था कि प्रिंट संस्कृति ने ऐसा माहौल बनाया जिसके कारण फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत हुई जिसके कारण इस प्रकार है।

1.)छपाई के कारण विचारों का प्रस्ताव हुआ। 
2.)उनके परंपरा और विश्वास और निरंकुशवाद की आलोचना हुई।
3.)रीती रिवाजों की जगह पर निरंकुशता पर हमला 4.)छपाई ने वाद विवाद की नई संस्कृति को जन्म दिया।

                    19वीं सदी

19 वी सदी में साक्षरता दर काफी तेजी से बड़ा। इससे पाठकों का एक ऐसा वर्ग सामने आया जिसमें बच्चे महिला और मजदूर थे।

 कई महिलाएं पठिका का के साथ लेखिका भी बन गई और इस तरह उनका महत्व बढ़ गया। बच्चों के लिए अलग से किताबें लिखी जाने लगी। कई प्रकार के लोक कथाओं को बदलकर लिखा गया ताकि बच्चे आसानी से समझ सके। 

किताबों को किराए पर देने वाले पुस्तकालय 16वीं सदी में ही प्रचलन में आ गए थे। 

             प्रिंट तकनीक में सुधार

न्यू यॉर्क के रिचर्ड ने 19वीं सदी के मध्य में एक ऐसा बेलनाकार प्रेस बना लिया, जिसमें 1 घंटे में 800 पेज छापे जा सकते थे और 19वीं सदी के अंत तक ऑफसेट प्रिंटिंग विकसित हो चुका था। ऑफसेट प्रिंटिंग से एक ही बार में छः रंगों में छपाई की जा सकती थी।

 बीसवीं सदी के आते ही बिजली से चलने वाले प्रेस भी इस्तेमाल होने लगे थे।

       किताब बेचने के नए तरीके

 19वीं सदी में कई पत्रिकाओं में उपन्यासों को धारावाहिक की शक्ल में छापा जाता था। इससे पाठकों को उस पत्रिका का अगला अंक खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था।

 1920 के दशक में इंग्लैंड में लोकप्रिय साहित्य को सीलिंग सीरीज के नास से सस्ते दर बेचा गया था।

 किताबों के ऊपर लगने वाले जिल्द का प्रचलन बीसवीं सदी से शुरू हुआ था।

               भारत का मुद्रण संसार

 भारत में फारसी, अरबी, संस्कृत और अनेकों प्रकार की क्षेत्रीय भाषाओं में हाथ से लिखित पांडुलिपियों की पुरानी और समृद्ध परंपरा थी।

 पांडुलिपियाँ ताड़ के पत्तों या हाथ से बने कागज पर नकल कर बनाई जाती थी। उनकी उम्र बढ़ाने के विचार से उन्हें जिल्द में बांध दिया जाता था।

 पूर्व औपनिवेशिक काल में बंगाल में ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशाला ओं का बड़ा जाल था, लेकिन विद्यार्थी आमतौर पर किताबें नहीं पढ़ते थे।

                  पांडुलिपियाँ

 हाथों से लिखी पुस्तकों को पांडुलिपियाँ कहते थे।

     पांडुलिपियाँ के प्रयोग की सीमाएं

1.)किताबों की बढ़ती मांग पांडुलिपियों से पूरी नहीं होने वाली थी। 

2.)नकल उतारना बेहद खर्चीला था। समय अधिक लगता था और मांग पूरी ना होना। 

3.)इन सभी समस्याओं की वजह से उनका आदान-प्रदान मुश्किल था।

      मुद्रण संस्कृति का भारत आना

प्रिंटिंग प्रेस सबसे पहले 16 वीं सदी में भारत के गोवा में पुर्तगाली धर्म प्रचारक के साथ आया।

 1670 इसवी तक को कोकनी एवं कन्नड भाषाओं में लगभग 50 पुस्तकें छापी जा चुकी थी। 

जेम्स ऑफस्टमक इन 1780 में बंगाल गजट नामक एक सप्ताहिक पत्रिका का संपादन आरंभ किया।

 गंगाधर भट्टाचार्य ने बंगाल गजट का प्रकाशन आरंभ किया। 

धार्मिक सुधार और सार्वजनिक बहस

प्रिंटिंग संस्कृति से भारत में धार्मिक सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर बहस शुरू करने में मदद मिली।

 1841 से राममोहन राय ने संवाद कौमुदी प्रकाशित करना शुरू किया। इन पत्रिका में हिंदू धर्म के रूढ़िवादी विचारों की आलोचना  होती थी

 1810 में कोलकाता में तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस को छापा गया। 1880 के दशक में लखनऊ के नवल किशोर प्रेस और मुंबई के श्री वेंकटेश्वर प्रेस में आम बोलचाल की भाषा में धार्मिक ग्रंथों को छापना शुरू किया।

 इस प्रकार प्रिंट के कारण धार्मिक ग्रंथ आम लोगों तक पहुंच गया, जिससे नई राजनैतिक बहस शुरू होने लगे।

मुस्लिमों ने मुद्रण संस्कृति को कैसे अपनाया

 1822 में फ्रांसीसी में दो अखबार शुरू हुए जिनके नाम थे जाम- ए – जँहा – नामा और शमशुल अखबार उसी साल एक गुजराती अखबार भी शुरू हुआ, जिसका नाम मुंबई समाचार था।


 उत्तरी भारत के उलेमाओं ने सस्ते लिथोग्राफी प्रेस का इस्तेमाल करते हुए धर्म ग्रंथों को उर्दू और फारसी में छापना शुरू किया। 

           प्रकाशन के नए रूप 

शुरू शुरू में भारत के कई लोगों को यूरोप के लेखकों के उपन्यास पढ़ने को मिलते थे। उपन्यास यूरोप के परिवेश में लिखे होते थे।

 बाद में भारतीय परिवेश पर लिखने वाले लेखक भी उभरे ऐसे उपन्यास के चरित्र और भाव से एक पाठक बेहतर ढंग से अपने आप को जोड़ सकते थे। 

अट्ठारह सौ सत्तर आते-आते पत्रिकाओं और अखबारों में कार्टून भी छपने लगे। 

        प्रिंट और महिलाएं

जेन औस्टिन ब्रांड , इलियट इत्यादि लेखक से नई नारी की परिभाषा सामने आए जिसका व्यक्तित्व मजबूत था जिसमें गहरी इच्छाशक्ति और अपना विवेक था।

 महिलाओं की जिंदगी और उनकी भावनाओं बड़ी साफ और गहनता से लिखी जाने लगी। इसलिए मध्यवर्गीय घरों में महिलाओं का पढ़ना पहले से ज्यादा हो गया।

1.)1876 ईस्वी में रशसुंदरी की आत्मकथा आमार जीवन प्रकाशित हुई। 

2.)1880 में ताराबाई शिंदे और पंडित रमाबाई ने उच्च जाति की नारियों की दैनिक पर रोष जाहिर किया।



आपने क्या सिखा

1.)1925 में मार्कोपोलो चीन से मुद्रण का ज्ञान लेकर इटली गया

2.) प्रिंट टेक्नोलॉजी को बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने 768 से 770 के आसपास जापान लाया।

3.) सिल्क रूट के माध्यम से 11वीं शताब्दी में चीनी कागज यूरोप पहुंचा।

4.) गुटेनबर्ग ने 1448 ईस्वी तक अपना एक यंत्र बना लिया और इससे पहली पुस्तक लिखी जो बाइबिल था।

5.) लेटरप्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की जाती थी। 

Notes :- तो आज इस post पर हमने मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया (notes) के बारे मे पढ़ा. तो मै आशा करता हूँ कि आपको ये पोस्ट जरूर पसंद आई होंगी तो इसलिए आप इसे अपने दोस्तों के बीच जरूर से jarur share करे

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