आज के इस पोस्ट में हम लाइसोसोम के बारे में ,लाइसोसोम के कार्य तथा लाइसोसोम के खोजकर्ता के बारे में बताये है तो समय को ज्यादा बर्बाद नही करते हुए हम पोस्ट को शुरू करते है ।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!इस पोस्ट पर पढ़ें जाने वाले Topics इस प्रकार है :-
.लाइसोसोम
.लाइसोसोम का निर्माण
.लाइसोसोम के प्रकार
.लाइसोसोम से होने वाले रोग
.लाइसोसोम के कार्य
.लाइसोसोम
लाइसोसोम ग्रीक भाषा के दो शब्दों लाइसो और सोमा से मिलकर बना है जिसमें लाइसो का अर्थ पाचक को और सोमा का अर्थ काय होता है तो लाइसोसोम का शाब्दिक अर्थ पाचककाय होता है।
लाइसोसोम की खोज डीo डवे ने किया था लेकिन ऐलेक्स नोविकॉफ ने इसे माइक्रोस्कोप के सहायता से कोशिका में सबसे पहले देखा था।
लाइसोसोम एकल झिल्ली वाला कोशिकांग होता है। जितनी प्रचुर मात्रा में अम्लीय हाइड्रोलेस एंजाइम पाए जाते हैं जो सभी प्रकार के पोषक तत्व यानी कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन ,लिपिड और न्यूक्लियस अम्लों का पाचन करता है।
अम्लीय हाइड्रोलिक एंजाइम को कार्य करने के लिए अम्लीय वातावरण की जरूरत होती है जो कि ATP द्वारा प्रदान की जाती है
.लाइसोसोम का निर्माण
लाइसोसोम का निर्माण E.R तथा गॉल्जीकाय कोशिकाओं के द्वारा होता है।
जिसमें E.R के द्वारा लाइसोसोम के एंजाइमों का निर्माण होता है तो वही लाइसोसोम के चारों तरफ से झिल्ली का निर्माण गौलजिकाय के द्वारा होता है।
.लाइसोसोम के प्रकार
गालजीकाय के मुख्य चार प्रकार होते हैं जो इस प्रकार से हैं।
1)प्राथमिक लाइसोसोम
2) द्वितीयक लाइसोसोम
3) अवशिष्ट काय
4)ऑटोफैगोसोम
1)प्राथमिक लाइसोसोम:-
यह लाइसोसोम का पहला भाग होता है जो लाइसोसोम के निर्माण के दौरान ही बनता है। प्राथमिक लाइसोसोम को भंडारण कणिकाएं भी कहते हैं क्योंकि इसमें अम्लीय हाइड्रोलेस निष्क्रिय रूप में जमा होता है और अम्लीय माध्यम में ही कार्य करता है।
2)द्वितीयक लाइसोसोम:-
लाइसोसोम के इस भाग का निर्माण प्राथमिक लाइसोसोम और फैगोसोम के संलयन द्वारा बनता है। इसे पाचक रितिका और हेटरोफेगोसोम भी कहा जाता है।
3)) अवशिष्ट काय :-
लाइसोसोम में अपचनीय सामग्री या अपशिष्ट सामग्री होती है जिसे एक्सोसाइटोसिस द्वारा कोशिका से बाहर निकाला जाता है।
4) ऑटोफैगोसोम:-
इस लाइसोसोम के द्वारा स्वयं की कोशिका की कोशिका अंगों को अपघटित किया जाता है।
.लाइसोसोम से होने वाले रोग :-
लाइसोसोम से कुछ बीमारियां होती है जिनके नाम इस प्रकार हैं।
1.गुचर रोग
2.पोम्पेस रोग
3.टे-सेक रोग
.लाइसोसोम के कार्य:-
लाइसोसोम के कार्य इस प्रकार है।
1.कोशिका के आंतरिक पदार्थों का पाचन करता है जिससे ऑटोफगी कहते हैं।
2.ऑटोलाइसिस प्रक्रिया से पुरानी कोशिकाओं और संक्रमित कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है।
यदि किसी कारणवश लाइसोसोम की थैली फट जाए तो इसके सभी पाचक एंजाइम खुद के सभी कोशिकांग ओं को पचा लेते हैं। इसलिए लाइसोसोम को आत्मघाती की थैली भी कहते हैं।
3.पीनोसाइटोसिस या साइटोसिस के माध्यम से कोशिका में प्रवेश करने वाले कणों का पाचन करता है। इसलिए इसे हेटरोफैगी कहते हैं।
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